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________________ रत्नत्रय विधान अब क्या लेना-देना है सिद्धों से यह बात बताओ। मैं स्वयं सिद्ध हूँ शाश्वत त्रैकालिक ध्रुवगुण गाओ।।१३।। ॐ ह्रीं श्री पंचमहाव्रतधारकमुनिराजाय अनर्घ्यपदप्राप्तयेजयमालापूर्णार्य निर्वपामीतिस्वाहा। (वीर) पंचमहाव्रत की पूजनकर व्रतधारण का जागा भाव । आप कृपा से नाश करूं मैं पाँचों प्रत्यय के परभाव।। रत्नत्रयमण्डल विधान की पूजन का है यह उद्देश । निश्चय पूर्ण देशसंयम ले धारूँ दिव्य दिगंबरवेश ।। पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् १६. श्री अहिंसाव्रतधारक पूजन गाओ रत्नत्रय के गीत । गाओ रत्नत्रय के गीत। पाओ शुद्धातम की प्रीत । पाओ शुद्धातम की प्रीत ।। गाओ... सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्र हृदय में धारो आज । भक्तिभाव से पूजन करके हर्ष मनाओ आज ।। पाओ वसु कर्मों पर जीत । गाओ... मोह-राग-द्वेषादिक भाव का करो अभी तुम नाश । यथाख्यातचारित्र प्राप्त कर पाओ ज्ञानप्रकाश ।। विभावी भाव जाएँगे रीत । गाओ... रत्नत्रय है धर्म हमारा रत्नत्रय है प्राण। रत्नत्रय ही मुक्तिमार्ग है रत्नत्रय निर्वाण ।। इसी को आज बनाओ मीत । गाओ... (ताटक) करुणामयी अहिंसाव्रत का पालन महाव्रती करते। हिंसामय परभाव नाशते सकल कलुषता को हरते ।।१।। निश्चय पंचमहाव्रत पालूँ परम अहिंसाव्रत धारूँ। षट्कायिक की दया पालकर सर्वपापमल निर्वारूँ ।।२।। शुद्ध अहिंसाव्रत पालनहित निजस्वभाव में रहँ प्रभो। रागादिक हिंसादिभाव का करूं सर्वथा त्याग विभो ।।३।। श्रेष्ठ अहिंसाव्रत की पूजन का जागा है उर में भाव। निरतिचारव्रत पालन करके निरखू अपना शुद्धस्वभाव ।।४।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामहाव्रतधारकमुनिराज अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामहाव्रतधारकमुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामहाव्रतधारकमुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (मानव) सद्धर्मतत्त्व जल पीकर तीनों भवरोग मिटाऊँ। शद्धात्मभाव में जीकर आनंद अतीन्द्रिय पाऊँ।। व्रत धर्म अहिंसा पालू प्रभु महाव्रती बन जाऊँ। षट्कायिक रक्षा के हित प्राणीसंयम उर लाऊँ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीपरमअहिंसामहाव्रतधारकमुनिराजाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीतिस्वाहा। सद्धर्मतत्त्व चंदन ला भवज्वाला शीघ्र बुझाऊँ। संसारताप क्षय करके आनंद अतीन्द्रिय पाऊँ।। व्रत धर्म अहिंसा पालू प्रभु महाव्रती बन जाऊँ। षट्कायिक रक्षा के हित प्राणीसंयम उर लाऊँ।।२।। ॐ ह्रीं श्री परमअहिंसामहाव्रतधारक्मुनिराजाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीतिस्वाहा। 39
SR No.008373
Book TitleRatnatray mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2005
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size280 KB
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