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प्रवचनसार पद्यानुवाद
पद्यानुवादक :
डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल शास्त्री, न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, एम.ए., पीएच.डी.
प्रथम संस्करण : ५ हजार प्रस्तत संस्करण की कीमत कम करने (७ फरवरी २००५)
वाले दातारों की सूची १. श्री महेन्द्रभाई मणिलालजी भालाणी, मुम्बई १००१
२. श्री जम्बूकुमारजी सोनी, इन्दौर १००१ मूल्य : दो रुपये पचास पैसे
३. श्रीमती भंवरीदेवी राजमलजी गोधा, लवाण १००१
४. श्री रमेशचन्दजी बड़जात्या, इन्दौर १००१ टाइपसैटिंग :
५.श्रीमती श्रीकान्ताबाई धर्मपत्लि त्रिमूर्ति कम्प्यूटर्स
श्री पूनमचन्दजी छाबड़ा, इन्दौर ५०१ ए-४, बापूनगर, जयपुर ६. श्रीमती रश्मिदेवी वीरेशजी कासलीवाल,
सूरत
३०१ ७. श्री बाबूलाल तोतारामजी जैन, भुसावल २५१ मुद्रक: जयपुर प्रिन्टर्स
| ८. श्री शान्तिनाथजी सोनाज, अकलूज २५१ एम.आई. रोड, जयपुर
कुल राशि : ५३०८
प्रकाशक: पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट
ए-४, बापूनगर, जयपुर-३०२०१५
विषयानुक्रमणिका ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार
पृष्ठ १से २२ मंगलाचरण एवं पीठिका (गाथा १से गाथा १२ तक) शुद्धोपयोगाधिकार (गाथा १३ से गाथा २० तक ज्ञानाधिकार
(गाथा २१ से गाथा ५२ तक) सुखाधिकार
(गाथा ५३ से ६८तक) शुभपरिणामाधिकार (गाथा ६९से गाथा ९२ तक) ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार
पृष्ठ २२ से ४५ द्रव्यसामान्यप्रज्ञापनाधिकार (गाथा ९३ से गाथा १२६ तक) द्रव्यविशेषप्रज्ञापनाधिकार (गाथा १२७ से गाथा १४४ तक) ज्ञान-ज्ञेयविभागाधिकार (गाथा १४५ से २०० तक) चरणानुयोगसूचक चूलिका महाधिकार
पृष्ठ ४५ से ६४ आचरणप्रज्ञापनाधिकार गाथा २०१से गाथा २३१ तक मोक्षमार्गप्रज्ञापनाधिकार गाथा २३२ से २४४ तक शुभोपयोगप्रज्ञापनाधिकार गाथा २४५ से गाथा २७० तक पंचरत्नाधिकार
गाथा २७१ से गाथा २७५ तक प्रवचनसार कलश पद्यानुवाद
पृष्ठ ६५ से ७६
प्रकाशकीय प्रवचनसार अनुशीलन भाग-१ (गाथा १ से १२ पर्यन्त) की पाँच हजार प्रतियाँ समाज में पहुँच चुकी हैं। अनेक नगरों में इसका स्वाध्याय भी हो रहा है और समयसार अनुशीलन के समान ही इसका सोत्साह स्वागत हो रहा है।
अब, प्रवचनसार परमागम ग्रन्थ के संपूर्ण गाथाओं का डॉ.भारिल्लकृत पद्यानुवाद पाठकों के हाथ में देते हुए हम बहुत प्रसन्नता अनुभव कर रहे हैं। समयसार आदि ग्रन्थों का पद्यानुवाद का रसास्वादन तो समाज कर ही रही है। तदनुसार अब प्रवचनसार के पद्यानुवाद का भी अध्यात्मरसिक समाज लाभ उठाये बिना नहीं रहेगी।
यह पद्यानुवाद वास्तविक अतिशय सुलभरूप से समझने योग्य हुआ है; क्योंकि इन पद्यों में अन्वय लगाकर अर्थ समझने की आवश्यकता नहीं है । गद्य जैसा पद्य है। पढ़ते जावो अर्थ समझ में आता जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द का हार्द पाठकों को अपनी भाषा में मिल रहा है - यह पाठकों का पुण्योदय ही समझना चाहिए। अल्पावधि में इसकी सी.डी. कैसेट भी तैयार कर रहे हैं।
-ब्र. यशपाल जैन एम.ए. - प्रकाशनमंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट