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पश्चात्ताप
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दो शब्द
देखा है, मामूली संशोधन व सम्वर्द्धन भी किया है, आवश्यकता | के अनुरूप कतिपय नये छन्द भी जोड़े हैं; पर उसके मूल स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं की। अतः अब यह लगभग उसी रूप में प्रस्तुत है।
इस छोटी सी कृति में क्या है - अध्ययन करने पर यह तो यह कृति स्वयं ही बतायेगी। आशा है आप भी इसमें व्यक्त मेरे विचारों से सहमत होंगे। कदाचित् सहमत न भी हों तो भी कोई बात नहीं, पर इसमें व्यक्त विचारों पर गंभीरता से विचार तो करेंगे ही।
विज्ञजनों से मेरा अनुरोध है कि इसे १७ या ७१ की दृष्टि से न देखकर, इसमें व्यक्त विचारों और उनके प्रस्तुतीकरण को ध्यान में रखकर इसका मूल्यांकन करें। आपकी प्रतिक्रिया जानकर मुझे प्रसन्नता तो होगी ही, मार्गदर्शन भी प्राप्त होगा।
दस माह में ही दस हजार के दो संस्करण समाप्त हो गये और अब यह संशोधित तीसरा संस्करण है। इसमें डॉ. हीरालालजी माहेश्वरी के महत्त्वपूर्ण सुझावानुसार कतिपय संशोधन किये गये हैं। 'अपनी बात' में संक्षेप में जैन मान्यतानुसार राम की कहानी देना जरूरी है; अन्यथा जो रामकथा लोक में प्रचलित है, उसके सन्दर्भ में भ्रम उत्पन्न हो सकते हैं, क्योंकि अग्निपरीक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न मान्यतायें हैं। कुछ ग्रन्थों में रावण के यहाँ से लाने के पहले ही अग्निपरीक्षा हो गई थी, तो कुछ के अनुसार हुई ही नहीं थी। इतना होने पर भी गर्भवती सीता के त्याग की बात तो प्रायः सर्वत्र ही पाई जाती है।
इस कृति के सम्बन्ध में डॉ. माहेश्वरीजी ने 'दो शब्द' लिखने की कृपा की है, तदर्थ मैं उनका बहुत-बहुत आभारी हूँ। २१ मार्च, २००७ - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
दो शब्द - डॉ. हीरालाल माहेश्वरी, एम.ए., एल्.एल्.बी.; डी.फिल्.,
___ डी.लिट्., साहित्यरत्न, साहित्यालंकार [सेवानिवृत्त - एसोसियेट प्रोफेसर तथा अध्यक्ष हिन्दी विभाग,
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ] 'पश्चात्ताप' की कथा का संक्षिप्त मूलाधार कवि ने अपनी बात' में दे दिया है। रामकथा और रामकथा का यह अंश यत्किंचित् परिवर्तित रूप में जैन शास्त्रों में मिलता है। सामान्य जैन और जैनेतर पाठक के मन में कथा का यह आधार रहना चाहिए; ऐसा होने पर वह कविता का मूल सन्देश और उसमें वर्णित विभिन्न मनोदशाओं को भलीभाँति हृदयंगम कर सकेगा।
यह मानसिक उद्वेग, अन्तर्द्वन्द्व, तर्क-वितर्क और संवेदनाओं की प्रभावपूर्ण, भावात्मक लम्बी कविता है । सती सीता की अग्नि-परीक्षा हुई
और वे सब कुछ त्याग कर वन में चली गई। तब भगवान राम सहित सबकी आँखें भर आईं। इसी बिन्दु से कविता शुरू होती है। श्रीराम के मन में पूर्व में घटी घटनाओं के सन्दर्भ और दृश्य उजागर होते हैं। शनैः शनैः वे गहन होते जाते हैं और उनका हृदय पश्चात्ताप की मौन वेदनाओं से भर उठता है।
धोबी-धोबिन के कथन को सुनकर लोकापवाद के कारण गर्भवती अकेली सीता को वन में छुड़वाना, लव-कुश के साथ युद्ध के समय नारद से उनको, उन्हीं के पुत्र होने का ज्ञान; सीता की अग्नि-परीक्षा, परीक्षा में सफल होने पर सीता का प्रव्रज्या लेने हेतु वन-प्रस्थान इत्यादि घटनाएँ उनके मानस में साकार हो जाती हैं। ____ वन जाते समय सीता की अत्यन्त विनययुक्त किन्तु मर्मभेदी सीख, कि - नाथ ! आपने निन्दा सुनकर मुझे तो छोड़ दिया, किन्तु धर्म की निन्दा सुनकर उसे मत छोड़ देना :
(धर्म की सुनकर निन्दा नाथ, छोड़ मत देना तुम उसको (२८)। - राम की शोकाग्नि और पश्चात्ताप को घनीभूत कर देती है। -