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पश्चात्ताप
एकसमीक्षात्मक अध्ययन
इसीप्रकार क्रमबद्धपर्याय' सिद्धान्त की छाया देख सकते हैं - आप न करें विकल्प विशेष,
सभी कुछ निश्चित हैंसंयोग ।।२३।। बारह भावनाओं में अनित्य भावना का चिन्तन भी सीता इसप्रकार करती हैं - नाते-रिश्ते सब झूठे हैं, इनमें उलझी दुनिया भोली ।।३४।।
अथवा नातों का ताप न तपना है,
नाते न मुझको अब भायें । नाते ही जग के बंधन हैं,
ये सभी जगत को भरमायें ।।३५ ।। उपर्युक्त उद्धरण लेखक की ज्ञाननिधि के अंश मात्र हैं। चूँकि कवि का उद्देश्य अंतस्थल में व्याप्त विप्लव को भावित करना है; अतः काव्य के सहज प्रवाह में ये मोती उतराए हैं।
वेदी पर उसे बलि देते समय उसके सामने मनु स्मृतिकार ही खड़े होंगे 'सात्र या सीमोन द वोडवार' नहीं; अतः अग्निपरीक्षा के दौरान नारी पर अत्याचार हो रहा है, उसके स्त्रीत्व का अपमान हो रहा है, यह विकल्प पौराणिक राम को सपने में भी नहीं आ सकता है। ___ यदि आधुनिक राम का अनुभव मानें तो यह भी संभव नहीं है; क्योंकि डॉ. नगेन्द्र के अनुसार “काव्य में कवि-अनुभूतियों का साधारणीकरण होता है" और राम कवि नहीं, काव्य के नायक हैं। अतः काव्य में वर्णित सभी विचार कवि की अनुभूतियों से निसृत हैं, वह भी युवा कवि की।
कवि के द्वारा संभवतः १९५२-५३ ई. आसपास इस काव्य की रचना की गई थी, जब कवि स्वयं युवा था और देश की तात्कालिक समाज और राजनीति को गहराई से समझ रहा था, अपने युग के सत्य के प्रति जागरुक था। प्राचीन मूल्यों का नए जीवन संदर्भो के परिप्रेक्ष्य में आकलन कर एक ओर उन्हें जीवन्तता प्रदान करना चाहता था तो दूसरी ओर वर्तमान की समस्याओं को महत्व देते हुए प्राचीन किन्तु जीवन्त मूल्यों से जोड़ना चाहता था। ___कवि की पीढ़ी ने स्वतंत्रता से पूर्व जिस रामराज्य का सपना देखा था; वह सपना आजादी के पश्चात् भंग होता है। जिन मूल्यों को गाँधी स्थापित कर गए थे, वे पुनर्स्थापन की माँग कर रहे हैं । फलतः स्वप्नभंग और मूल्य-विघटन के इस दौर में युवा मन की रचना राजनीति, लोकतंत्र जैसे विषयों पर सवाल उठाती है। साथ ही सामाजिक सरोकारों को आधी आबादी के साथ जोड़ने का प्रयास करती है।
पश्चात्ताप' काव्य में कवि ने राम को पौराणिक संदर्भो से निकालकर पूर्णतः आधुनिक मानव बनाया है। यहाँ राम का चरित्र दिव्य नहीं है, वह व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक धरातल पर बुना गया है। नायक की निजी पीड़ा है, फिर भी सामाजिक-राजनैतिक एवं सांस्कृतिक सरोकारों को आत्मसात किए हुए है।
'पश्चात्ताप' - आधुनिक संदर्भो का विधान -
'पश्चात्ताप' काव्य के अध्ययन के दौरान यह सवाल बार-बार मन में उठता रहा कि काव्य में व्यक्त भाव एवं विचार कवि के अनुभव हैं या नायक राम के? यदि कवि के अनुभव हैं तो कौन से कवि के युवा कवि के या प्रौढ़ कवि के, और यदि राम के हैं तो कौन से राम के पौराणिक राम के या तुलसी के राम के या आधुनिक राम के ?
इन विकल्पों में से दो विकल्पों को तो सीधे-सीधे नकारा जा सकता है, एक तो प्रौढ़ कवि को; क्योंकि काव्य में जो वैचारिक स्फूर्ति या ताजगी है, वह किसी युवा मन का ही उत्साह हो सकता है। दूसरे, पौराणिक राम को, क्योंकि पौराणिक राम आदर्श नायक हैं, सामन्तवाद या राजतंत्र का हिस्सा हैं। भले ही वह एक पत्नीव्रती हैं, किन्तु कर्तव्य की