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पश्चात्ताप
एक समीक्षात्मक अध्ययन
वह एक ऐसा मानव है, जो राजत्व के कारण विवश है। अपनी । पत्नी से एकनिष्ठ प्रेम करता है; पर खेद है कि वह अपनी प्रजा से भी प्रेम करता है, सामाजिक मूल्यों से भी प्रेम करता है।
राम की विवशता काव्य के आरंभ में ही दिखाई देती है, जब सूत्रधार (काल्पनिक) कहता है - "शील ने रखी सती की लाज" अर्थात् राम तो अपनी विवशता के वशीभूत होकर सती की लाज नहीं रख सके; पर सीता के सतीत्व ने सीता की लज्जा की, प्रतिष्ठा की रक्षा की। नायक अवश्य व्याकुल है सीता के प्रेम से । वह सब कुछ हो रहा है, जो वह नहीं चाहता है। राम की यह विवशता काव्य में अंत तक रहती है।
राजा होना एक विवशता थी, कर्तव्यपालन दूसरी विवशता, प्रेम में उद्वेलित होना तीसरी विवशता, पिता होने का सुख न प्राप्त कर पाना चौथी विवशता, अग्निपरीक्षा लेना पाँचवीं विवशता, सीता को दीक्षा लेने से न रोक पाना छठी, सीता के व्यंग्य झेलना सातवीं, स्वयं के लिए पश्चात्ताप का अग्निकुण्ड तैयार कर कूद पड़ना आदि अनेक विवशताएँ हैं, जो राम के चरित्र को विवश मानव घोषित करती हैं। ___जाहिर है कि ऐसा विवश मानव जब-जब विवशता के कारणों की खोज करेगा तो वह स्थापित पौराणिक मानदण्डों को शंका की दृष्टि से देखेगा, फलतः एक अलग सा भिन्न आधुनिक मानव निखरकर आएगा। इस आधुनिक मानव का द्वन्द्व अन्तरतल पर हृदय और बुद्धि का द्वन्द्व है। कवि ने लिखा है - "मनीषा करती तर्क-वितर्क" राम के द्वन्द्वों में पहले सीता के निर्वासन और अग्निपरीक्षण के क्षण, बुद्धि ने हृदय को पराजित कर दिया; किन्तु पुनः हृदय बुद्धि के साथ द्वन्द्व स्थापित कर रहा है, जो काव्यांत तक जारी रहेगा। इस द्वन्द्व में हृदय बुद्धि को उसके द्वारा किए अनुचित कार्यों की सूची थमा रहा है। ___पश्चात्ताप के राम तुलसी और निराला के राम से पूर्णतः भिन्न चरित्र के हैं, यह राम निरीह व कमजोर हैं । तुलसी के राम धीर-गम्भीर हैं, पूरा
का पूरा मानस लिख डाला, पर राम की आँख से एक कतरा भी नहीं बहने दिया; क्योंकि उन्हें रावण से युद्ध लड़ना था, कमजोर चरित्र युद्ध कैसे लड़ता? हार न जाता।
दूसरी बात, तुलसी को मानस में इस राम के चित्रण का अवसर भी नहीं मिला। गीतावली में मिला भी तो काल्पनिक घटना कहकर टरका दिया। निराला ने 'शक्तिपूजा' में राम को दुर्बलता के किसी क्षण में रोने को बाध्य जरूर किया है, जब राम को यह विश्वास होने लगा कि प्रिया प्राप्त करना कठिन है - 'धिक् जीवन जो पाता आया विरोध', 'उद्धार प्रिया का हो न सका' यह विचार आते ही राम की आँखों से दो अश्रु बिन्दु ढुलक पड़े। ___ "हो गए नयन कुछ बूंद पुनः ढलके दृग जल"
निराला के राम के मन में मात्र संशय था कि वे अपनी प्रिया को अब प्राप्त न कर सकेंगे। पर ‘पश्चात्ताप के राम के मन में संशय नहीं, पूर्ण विश्वास है कि अब प्रिया को प्राप्त करना असंभव है। इसीलिए - सीतेश प्रभु की आँखों से,
टपटप दो आँसू टपक पड़े।।४२ ।। निराश राम ने जो पश्चात्ताप किया. उसने राम को आधनिक बना दिया। यह राम सुख के क्षणों में हँसता है, पीड़ा में दुःखी होता है, और अपनी प्रिया के प्रति गहरी संवेदनाएँ रखता है। ___कवि ने 'अपनी बात' में लिखा है कि "उक्त मंथन में कुछ प्रकाश आज की समस्याओं पर भी पड़ गया है।" वे समस्याएँ क्या हैं और कौन सी हैं? इसे राम के मुख से कहलवाया है।
कवि का सबसे पहले ध्यान न्यायपालिका की ओर गया । न्याय क्या है? न्यायाधीश कैसा होना चाहिए? क्या जनता के निर्णय न्यायाधीश को न्याय से विचलित कर सकते हैं? क्या बहुमत के कहने पर अन्याय न्याय हो जाएगा? निश्चित रूप से नहीं !
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