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पश्चात्ताप
साधारणीकरण करने की अद्भुत क्षमता है।
प्रस्तुत कृति में राम के द्वारा सीता के प्रति हुए अन्याय के अहसा का सजीव चित्रण हुआ है, पश्चात्ताप के द्वारा उस अपराध के प्रायश्चित करने की अभिव्यक्ति भी चरम सीमा पर है।
इससे पता चलता है कि भाई हुकमचन्द में जन्मजात सर्वतोमुखी साहित्यिक प्रतिभा है । कहानी, उपन्यास, निबन्ध के साथ आध्यात्मिक पद्य रचना तथा भाषण कला में वे बेजोड़ हैं।
पण्डित रतनचन्द भारिल्ल संपादक : जैनपथप्रदर्शक, बापूनगर, जयपुर - १५ सरल, सुबोध और प्रभावी
जैनपरम्परा के कथानकों के आधार पर डॉ. भारिल्ल ने अपनी अनूठी शैली तार्किकता- दार्शनिकता युक्त यथार्थ चित्रण में सीता की अग्नि परीक्षा से सम्बद्ध राम के मनोविचार, लोकनीति, न्यायसिद्धान्त, धर्मनीति और कर्मसिद्धान्त के गूढ़ रहस्यों को काव्यरूप में चित्रित किया है। उनकी भाषा विचार और तर्क का अनुसरण करती हुई सरल-सुबोध और प्रभावी है । यथास्थान सशक्त सूक्तियों और लोकनीति के मुहावरों के प्रयोग से घटनाओं के अंतर रहस्य सहजता से उद्घाटित हुए हैं।
डॉ. भारिल्ल बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। उनका व्यक्तित्व अद्भुत है। वे ख्याति प्राप्त लेखक, विचारक और प्रवचनकार तो हैं ही, आचार्य अमृतचन्द्रसूरि जैसे सहृदय कवि भी हैं। चिंतन की गहराईयों के साथ हृदय की गहराईयों में उतरकर मानव के चिरंतन मूल्यों को अनुभूत कर उनकी प्रभावी स्थापना करना दुखद कार्य है। डॉ. भारिल्ल इस कार्य को सहजता में सम्पन्न कर लेते हैं, यह उनके
मनीषियों की दृष्टि में -
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व्यक्तित्व की निराली विशेषता है।
लोकापवाद से बचने हेतु राम द्वारा सीता का परित्याग एक ऐसी निर्मम घटना है, जो पुनः चिंतन के लिए प्रेरित करतीं हैं। अग्निपरीक्षा लोकापवाद के समय भी ली जा सकती थी, इससे निर्जन वन गमन रुक सकता था।
- डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल अमलाई, जिला शहडोल (म.प्र.) - ४८४११७ लीक से हटकर
लीक से हटकर मौलिक चिन्तन पर आधारित इस कृति में सूक्तियों के सहज प्रयोग ने चार चाँद लगा दिये हैं।
काव्य की भाषा सरल, सहज एवं बोधगम्य है, जिसे हर स्तर के सहृदय व्यक्ति सहजता से समझ सकते हैं। छंदों की चरण-रचना को देखते एवं पढ़ते ही राष्ट्रकवि स्वर्गीय श्री मैथलीशरण गुप्त की काव्यशैली के साथ साहचर्य स्थापित हो जाता है। उनके खण्डकाव्य 'यशोधरा' एवं महाकाव्य 'साकेत' में 'कैकयी के अनुताप' की झलक मुझे राम के पश्चात्ताप में दिखाई देती है।
- प्रेमचन्द सिंह (व्याख्याता)
एम.ए. (हिन्दी, इतिहास) बी. एड., एल. एल. बी., आयुर्वेदरत्न ओ.टी.एस. शिक्षण केन्द्र हा. सै. विद्यालय, अमलाई, शहडोल (म.प्र.) सहज भावाभिव्यक्ति
'पश्चाताप' १३१ छन्दों में निबद्ध डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल की १७ वर्ष की तरुण अवस्था में लिखी गई प्रभावपूर्ण सशक्त रचना है।
विवेच्य काव्य भाषाशैली की दृष्टि से सरल, सहज एवं बोधगम्य है। एक-एक काव्य नेत्रपटल पर चलचित्र की भाँति उभरता और