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________________ पश्चात्ताप मनीषियों की दृष्टि में 'पश्चात्ताप' साहित्य जगत में नयी दृष्टि भारतवर्ष की जनता में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र जितनी गहरी पैठ बना पाया; उतना अन्य किसी महापुरुष का नहीं। यही कारण है कि हर काल में राम विषयक साहित्य सृजन हर भाषा में किया गया। राम सभी के हैं; इसलिए सभी ने राम को अपने-अपने आइने से देखा और निरूपित किया। साहित्यकारों की इसी श्रृंखला में हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार एवं कवि डॉ. हुकमचन्द भारिल्लजी भी आते हैं। उन्होंने महज सत्रह-अठारह वर्ष की उम्र में तर्क और श्रद्धा के अद्भुत समन्वय का कुशल प्रदर्शन अपने काव्य ‘पश्चात्ताप' में राम का नया व्यक्तित्व दर्शा कर किया है। जहाँ लेखक एक तरफ राम की वीतरागता के परम उपासक दिखायी पड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वे राम को जनता की अदालत में भी खड़ा करते हैं। यह कहना गलत न होगा कि लेखक के काव्य से जो स्वर मुखरित हो रहा है, उसमें सीता का व्यक्तित्व राम की अपेक्षा कहीं अधिक निखर कर सामने आ रहा है। आधुनिक भारतवर्ष में महिलाओं का जो विकसित स्वरूप सामने आ रहा है, उस परिप्रेक्ष्य में महिला अध्ययन केन्द्रों में यह खण्डकाव्य विमर्श का विषय बनेगा तथा लेखक की इस नयी दृष्टि का साहित्य जगत में जोरदार स्वागत होगा। - डॉ. अनेकान्त कुमार जैन अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली युगानुरूप भारतीय साहित्य में रामकथा का स्थान सर्वोपरि है। जैन ग्रन्थकारों ने भी ईसवी सन् के प्रारंभिक काल से ही रामकथा को अपने लेखन का आधार बनाया है। उसी कड़ी में डॉ. भारिल्ल ने युगानुरूप 'पश्चात्ताप' नामक काव्य की रचना कर जैनसाहित्य को समृद्ध किया है। नाम के अनुरूप कृति में भाव का भी पूरा ध्यान रखा गया है, जिससे विषय-वस्तु जीवन्त हो चली है। हिन्दी भाषा में लघु काव्य समय की माँग है, जिसे उक्त कृति पूरा करने में समर्थ है। आशा है भारिल्लजी अन्य प्रसंगों को भी अपने लेखन का आधार बनायेंगे। - डॉ. ऋषभचन्द जैन, निदेशक रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ प्राकृत जैनोलॉजी एण्ड अहिंसा वैशाली (विहार) एक अनुपम कृति प्रस्तुत पश्चात्ताप कृति उनकी १७ वर्ष की उम्र में लिखी गई थी। इसका मैं प्रत्यक्ष साक्षी हूँ; क्योंकि यह रचना मैंने १९५३ में ही पढ़ ली थी। इसके पहले भी छुटपुट रचनायें और कहानियाँ लिखी गई थीं। ___आश्चर्यजनक बात यह है कि उस छोटी सी उम्र में इस कृति में ऐसी सोच, ऐसा चिन्तन और ऐसे तर्क आये हैं; जो आम आदमी के सोच से परे हैं। इन सबसे प्रस्तुत कृति ऐसी अनुपम बन पड़ी है कि जो आज के संदर्भ में भी सार्थक साबित हो रही है। १३१ छन्दों में रचित पश्चात्ताप काव्य काव्यकला की दृष्टि से तो श्रेष्ठ है ही, भावाभिव्यक्ति भी हृदय को छू जाने वाली है। पढ़ते-पढ़ते पाठक भावविभोर हुए बिना नहीं रहता। कृति में पाठकों का
SR No.008366
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size175 KB
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