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पर से कुछ भी सम्बन्ध नहीं
वस्तु स्वातंत्र्य की घोषणा
पर से सर्वथा भेदज्ञान कराते हुए अर्थात् पर से सम्बन्ध का निषेध करते हुए और कर्ता-कर्म का वास्तविक सम्बन्ध बताते हुए आचार्य अमृतचन्द्र सर्वविशुद्ध - ज्ञानाधिकार में वस्तु स्वातंत्र्य की घोषणा करते हैं। वे कहते हैं कि -
ननु परिणाम एव किल कर्म विनिश्चयतः, स भवति नापरस्य परिणामिन एव भवेत् । न भवति कर्तृशून्यमिह कर्म न चैकतया; स्थितिरिह वस्तुनो भवतु कर्तृ तदेव ततः ।। अन्वयार्थ :- ( ननु परिणाम एव किल विनिश्चयत: कर्म ) वास्तव में अपना परिणाम ( पर्याय ) ही निश्चय से कर्म है, ( सः परिणामिन एव भवेत् अपरस्य न भवति ) वह परिणाम अपने अश्रयभूत परिणामी ( द्रव्य ) का ही होता है, अन्य का नहीं ( इह कर्म कर्तृ शून्यम् न भवति ) और कर्म कर्ता के बिना नहीं होता ( च वस्तुनः एकतया स्थिति इह न ) तथा वस्तु की स्थिति सदा एकरूप ( कूटस्थ ) नहीं होती; ( क्योंकि वस्तु द्रव्य-पर्याय स्वरूप होने से उसमें सर्वथा नित्यत्व संभव नहीं है ) ( तत: तद् एव कर्तृ भवतु ) इसलिए वस्तु स्वयं ही अपने परिणामरूप कर्म की कर्ता है।
इसके पूर्व टीका में स्पष्ट लिखा है कि "न तु अनेक द्रव्यत्वेन ततो अन्यत्वे सति तन्ममयो भवति, ततो निमित्तनैमित्तिक भाव मात्रेणैव
१. समयसार कलश २११