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प्रश्न ४२ : 'वस्तु की सहज शक्ति' का क्या अर्थ है ?
उत्तर: उपादान वस्तु की सहज शक्ति निमित्त परसंयोग । जब उपादान कारण अपनी सहज शक्ति से कार्य करता है, तब जो संयोग रूप कारण हो, उसे निमित्त कहते हैं। 'वस्तु की सहजशक्ति' का अर्थ मात्र वस्तु की त्रिकाली शक्ति नहीं है; बल्कि द्रव्य-गुण-पर्याय तीनों की शक्ति उपादान है।
उपादान और निमित्त दोनों वस्तुयें भिन्न-भिन्न हैं, एक स्वभाव रूप, दूसरा, संयोग रूप । इसी बात को पं. बनारसीदास के शब्दों में कहें
द्रव्य-गुण- पर्याय की स्वतन्त्रता
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उपादान निज गुण जहाँ तहाँ निमित्त पर होय । भेदज्ञान परवान विधि, विरला बूझे कोय ॥४॥ यद्यपि यहाँ निमित्त को संयोगरूप परद्रव्य कहा; परन्तु अन्य प्रकार से अपने में ही, एक द्रव्य में ही गुणभेद कल्पना करके गुणों में भी परस्पर निमित्तपने की चर्चा आगम में है। जैसे कि जीव में ज्ञान और चारित्र दोनों गुणों का परिणमन सहकारी पने एकसाथ वर्त रहा है, उसमें चारित्र को उपादान और ज्ञानगुण को निमित्त कहा गया है।
यहाँ दो पृथक्-पृथक् द्रव्यों में निमित्त उपादान बताया है। जैसेमोक्षमार्गरूप कार्य का उपादान कारण शुद्धात्मा स्वयं है और बाह्य में सच्चे देव-शास्त्र-गुरु निमित्त कारण हैं। इसप्रकार इस उदाहरण में उपादान व निमित्त दोनों भिन्न-भिन्न द्रव्य हैं। और भिन्न-भिन्न वस्तुएँ एक-दूसरे में कुछ नहीं करतीं, एक-दूसरे को परिणमा नहीं सकतीं; क्योंकि दोनों भिन्न-भिन्न द्रव्यों के बीच अत्यन्ताभाव की बज्र की दीवाल खड़ी है। यही वस्तुस्वातंत्र्य का महा सिद्धान्त है। यह जानकर तत्त्वज्ञानी निमित्तों पर रोष-तोष नहीं करके समताभाव धारण करने का सम्यक् पुरुषार्थ करते हैं।
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प्रश्न ४३ : अध्यात्म में 'नैमित्तिक' शब्द का क्या अर्थ है ? व्याकरण अनुसार तो यह अर्थ है कि जो कार्य निमित्त से हो, उसे नैमित्तिक कहते हैं। उत्तर : व्यवहार में तो यही परिभाषा चलती है कि जो कार्य निमित्त से हो वह
द्रव्य-गुण- पर्याय की स्वतन्त्रता
एक ही द्रव्य में रहनेवाले अनन्त और गुणों की स्वतंत्रता स्वीकार किए बिना उपादान - निमित्त का सच्चा ज्ञान नहीं हो सकता। जिसप्रकार एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के आधीन नहीं, उसीप्रकार एक गुण दूसरे गुण के १. मोक्षमार्गप्रकाशक, नवम् अध्याय, पृष्ठ- ३२८