________________
कार्य की निष्पन्नता में निमित्तों का स्थान
जाता है।
प्रश्न २४ : सहकारी कारण सापेक्ष विशिष्ट पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारी है। इस कथन का क्या अर्थ है?
उत्तर : शक्ति दो प्रकार की होती है - द्रव्यशक्ति और पर्यायशक्ति। इन दोनों शक्तियों का नाम ही उपादान है। पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारी होती है। द्रव्यशक्ति नित्य होती है और पर्यायशक्ति अनित्य । यद्यपि नित्यशक्ति के आधार पर कार्य की उत्पत्ति मानने पर कार्य के नित्यत्व का प्रसंग आता है; अत: पर्याय शाक्ति को ही कार्य का नियामक कारण स्वीकार किया गया है। तथापि द्रव्यशक्ति यह बताती है कि यह कार्य इस द्रव्य में ही होगा, अन्य द्रव्य में नहीं और पर्यायशक्ति यह बताती है कि विवक्षित कार्य विवक्षित समय में ही होगा। अत: न तो द्रव्यशक्ति महत्त्वहीन है और न पर्यायशक्ति ही; दोनों का ही महत्त्व है। पर, ध्यान रहे काल की नियामक पर्यायशक्ति ही है। काल का दूसरा नाम भी पर्याय है। यह पर्यायशक्ति अनन्तपूर्वक्षणवर्तीपर्याय के व्ययरूप एवं तत्समय की योग्यतारूप होती है। अतः इन दोनों की ही क्षणिक उपादान संज्ञा है। इसीलिए क्षणिक उपादान को कार्य का नियामक कहा गया है।
यदि त्रिकाली उपादान को भी शामिल करके बात कहें तो इसप्रकार कहा जायेगा कि पर्यायशक्ति युक्त द्रव्यशक्ति कार्यकारी है, पर इसमें भी नियामक कारण के रूप में तो पर्यायशक्तिरूप क्षणिक उपादान ही रहा।
यदि निमित्त को भी इसमें शामिल करके बात करनी है तो इसप्रकार कहा जाता है कि - सहकारीकारणसापेक्ष विशिष्ट पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारी है।
कार्य की निष्पन्नता में निमित्तों का स्थान प्रश्न २५ : निमित्तों को कर्ता मानने से क्या-क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर : १. निमित्तों को कर्त्ता मानने से उनके प्रति राग-द्वेष की उत्पत्ति होती है।
२. यदि धर्मद्रव्य को गति का कर्ता माना जायेगा तो निष्क्रिय आकाशद्रव्य को भी गमन का प्रसंग प्राप्त होगा, जो कि वस्तुस्वरूप के विरुद्ध है।
३. यदि गुरु के उपदेश से तत्त्वज्ञान होना माने तो अभव्यों को भी सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति मानने का प्रसंग प्राप्त होगा, जबकि अभव्य को सम्यग्ज्ञान की योग्यता ही नहीं है।
४. निमित्तों को कर्त्ता मानने से सबसे बड़ी हानि यह है कि - "अनादि निधन वस्तुयें भिन्न-भिन्न अपनी मर्यादा में परिणमित होती हैं, कोई किसी के अधीन नहीं है। कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होती"" इस आगमोक्त वस्तुस्वातंत्र्य के मूल सिद्धान्त का हनन हो जायेगा।
प्रश्न २६ : निमित्त कर्ता नहीं, क्या इसका कोई आगम प्रमाण है ?
उत्तर : हाँ, ऐसे अनेक आगम प्रमाण हैं, जिनसे निमित्तों का अकर्तृत्व सिद्ध होता है?
१. भगवान महावीर के पूर्व भव का जीव मारीचि इसका ज्वलंत उदाहरण है। तीर्थंकर ऋषभेदव जैसे समर्थ निमित्त की उपस्थिति से भी मारीचि के भव में उपादान की योग्यता न होने से भगवान महावीर के जीव का कल्याण नहीं हुआ तथा महावीर स्वामी के उस भव पूर्व जब सिंह की पर्याय में उनके
पादान में सम्यादर्शन रूप कार्य होने की योग्यता आ गई तो निमित्त तो बिना १. (समयसार कलश ५१ कर्ता-कर्म अधिकार)
१. मोक्षमार्गप्रकाशक : तृतीय अध्ययन, पृष्ठ ५२