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________________ अपनी बात गद्याशी क्रमबद्धपर्याय औरों के लिए............. ...............बात करनी होगी। (पृष्ठ 2 पैरा १ से ४ तक) विचार बिन्दु :- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक की दृष्टि में क्रमबद्धपर्याय विषय की कितनी महिमा है - इसका उल्लेख किया गया है। इसे जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प व्यक्त करते हुए वे सभी लोगों से इस विषय पर निष्पक्ष एवं गंभीर विचार मंथन की अपेक्षा रखते हैं। प्रश्न :१. लेखक की दृष्टि में क्रमबद्धपर्याय का क्या महत्व है? २. इस विषय पर चर्चा के बारे में लेखक का क्या दृष्टिकोण है? क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका इसीलिए अब कुछ लोग उनसे आपकी क्रमबद्धपर्याय' ऐसा कहकर भी सम्बोधन करते हैं। प्रस्तुत लेख में डॉ. साहब ने उन्मुक्त हृदय से यह बात स्वीकार की है कि क्रमबद्धपर्याय समझने से ही उनके चिन्तन को सही दिशा मिली है, उससे उनका जीवन ही बदल गया है। पूज्य स्वामीजी से भी डॉ. साहब का परिचय उनके 'क्रमबद्धपर्याय' विषय पर हुए प्रवचनों को पढ़कर हुआ। यह भी एक सुखद संयोग है कि डॉ. साहब की कृति ‘धर्म के दशलक्षण' और क्रमबद्धपर्याय' से स्वामीजी भी विशेष प्रभावित हुए। उन्होंने अपने प्रवचनों में सैकड़ों बार इन कृतियों का उल्लेख करते हुए डॉ. साहब की खुलकर प्रशंसा की है। सन् १९७९ में बड़ौदा में आयोजित पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में रात्रि चर्चा के समय डॉ. साहब को मञ्च पर बुलाकर अपने पास बिठाते हुए स्वामीजी ने कहा - 'तुम यहाँ ऊपर ही बैठा करो।' फिर सभा को सम्बोधित करते हुए कहा - 'इसने क्रमबद्धपर्याय पुस्तक लिखकर समाज का बहुत उपकार किया है।' ___ इसमें सन्देह नहीं कि इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद दिगम्बर समाज के अनेक विद्वान भी इस विषय पर गम्भीरता से विचार करने हेतु प्रेरित हुए। जो लोग इस सिद्धान्त से सहमत नहीं थे, उन्होंने भी इसके पक्ष में अपनी सहमति भेजी। ___इसप्रकार इस युग में क्रमबद्धपर्याय सिद्धान्त को डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से अलग नहीं देखा जा सकता। इसलिए इस लेख के माध्यम से डॉ. साहब के जीवन और चिंतन के अचर्चित बिन्दुओं को समझना अत्यंत आवश्यक है। इसमें हमें भी इस विषय को गहराई से समझने की प्रेरणा गद्यांश २ मेरी समझ में यह कैसे.. .............लाभ भी प्राप्त हुआ। (पृष्ठ । पैरा ५ से पृष्ठ XI पैरा ११ तक) विचार बिन्दु :- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अपने जीवन की उस घटना का उल्लेख किया है, जिसके माध्यम से उन्हें क्रमबद्धपर्याय एवं उसके प्रस्तुतकर्ता आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्यश्री कानजीस्वामी का परिचय हुआ। आत्मधर्म में स्वामीजी के तेरह प्रवचन पढ़ने के बाद उन्हें जो आध्यात्मिक उपलब्धि हुई और उनकी जीवनचर्या में जो परिवर्तन आया, उसका उन्होंने खुलकर वर्णन किया है। विशेष निर्देश :- इसका रस कुछ ऐसा लगा कि चढ़ती उम्र के सभी रस फीके हो गए - इस वाक्यांश पर विशेष ध्यान आकर्षित किया जाए। प्रश्न :३. लेखक के जीवन में क्रमबद्धपर्याय' सम्बन्धी चर्चा कैसे प्रारंभ हुई? ४, आत्मधर्म के प्रवचनों को पढ़कर लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा? मिलेगी।" विशेष निर्देश :- सम्पूर्ण लेख को ४-५ गद्यांशों में विभाजित करके एकएक गद्यांश का यथासंभव छात्र-पठन कराना चाहिए। पठित गद्यांश में व्यक्त किए गए विचारों की संक्षेप में चर्चा करें तथा आवश्यकतानुसार प्रश्न भी पूछे । यहाँ प्रस्तुत लेख के गद्यांशों का संकेत करके उनमें प्रतिपादित विचार-बिन्दुओं का उल्लेख करते हुए प्रश्न दिये जा रहे हैं। 10 10
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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