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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका अपनी बात **** ९. क्रमबद्धपर्याय की बात लेखक की समझ में कैसे आई? गद्यांश३ सर्वप्रथम स्वामीजी..............................हम दोनों सहोदर सोनगढ़ गए। (पृष्ठ XI पैरा २ से पृष्ठ XII पैरा ३ तक) विचार बिन्दु :- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक को स्वामीजी के प्रथम दर्शन होने के प्रसंग का उल्लेख है। उन्होंने १९५७ में बबीना, सोनगिर और चांदखेड़ी में स्वामीजी के प्रवचनों का लाभ लिया और अपनी सर्वप्रथम कृति देव-शास्त्रगुरु पूजन उन्हें भेंट की। स्वामीजी द्वारा सोनगढ़ आने का निमंत्रण मिलने का वर्णन भी अत्यन्त रोमाञ्चक है। प्रश्न :५. लेखक स्वामीजी के परिचय में किस प्रकार आए? सभी प्रसंगों का क्रमबद्ध उल्लेख कीजिए? ६. लेखक की सर्वप्रथम प्रकाशित कृति कौन-सी थी तथा उसकी क्या विशेषता थी? ७. स्वामीजी ने लेखक को सोनगढ़ आने का निमंत्रण क्यों दिया? 2222 गद्यांश ४ क्रमबद्धपर्याय की बात...........................में आने का काल पक गया था। (पृष्ठ XII पैरा ४ से सम्पूर्ण) विचार बिन्दु :- इस गद्यांश में लेखक ने क्रमबद्धपर्याय का परिचय होने से पूर्व अपनी कमियों और विशेषताओं का निःसंकोच वर्णन किया है। 'समझ में शास्त्रों का मर्म तो नहीं, पर मान तो आ ही गया था' इस वाक्य के माध्यम से उन्होंने अपनी कमजोरी बताते हुए इस तथ्य की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि आध्यात्मिक रुचि के बिना शास्त्रज्ञान किसप्रकार कषायपोषक हो जाता है। प्रश्न :८. क्रमबद्धपर्याय की बात समझने से पूर्व लेखक की विशेषताओं और कमियों का उल्लेख करते हुए उनका कारण भी बताइये? गद्यांश५ इसके बाद तो इसी कारण...........................अपना श्रम सार्थक समशृंगा। (पृष्ठ XIII पैरा १ से पृष्ठ XIV पैरा १ तक) विचार बिन्दु :- इस गद्यांश में क्रमबद्धपर्याय की बात समझने से लेखक को जो लाभ हुआ, उसका वर्णन किया गया है। क्रमबद्धपर्याय पुस्तक लिखना कैसे प्रारम्भ हुआ, इसकी चर्चा करते हुए, पाठकों से इसे बार-बार पढ़ने और विचार-मंथन करने का अनुरोध किया गया है, तथा इसकी श्रद्धा से मुक्ति का मार्ग किसप्रकार प्रगट होता है - यह भी बताते हुए विरोध करने वालों को भी इसे स्वीकार करने की प्रेरणा दी है। प्रश्न :१०. क्रमबद्धपर्याय समझने से लेखक को कैसा अनुभव हुआ? ११. क्रमबद्धपर्याय की स्वीकृति में जीत है, हार है ही नहीं - इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए? १२. यह कृति लिखने की प्रेरणा लेखक को कैसे मिली? १३. लेखक अपने श्रम की सार्थकता किसमें समझते हैं? .... गद्यांश६ इसके लिखने में मैं.... ...होकर अनन्त सुखी हो। (पृष्ठ XIV पैरा २ से पृष्ठ XXI सम्पूर्ण) विचार बिन्दु :- इस गद्यांश में लेखक ने प्रस्तुत कृति के प्रारम्भ से पूर्णता तक सभी बिन्दुओं का वर्णन करते हुए यह भी बताया है कि उन्होंने इसे 11
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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