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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका निबन्ध के रूप में समाज के विद्वानों के पास दो बार भेजा, ताकि उनके सुझावों पर गम्भीरता से विचार करके उन्हें इसमें शामिल किया जा सके। प्रस्तुत कृति को उन्होंने किस प्रकार सर्वांङ्ग सुन्दरता और परिपूर्णता प्रदान की है- इसकी चर्चा भी की गई है। पुस्तक के दोनों खण्डों और परिशिष्टों का परिचय भी दिया गया है। सन् १९७९ लेखक के लिए क्रमबद्धपर्याय वर्ष हो गया था। अन्त में उन्होंने विद्वानों से इसकी कमियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का पुनः अनुरोध किया है, क्योंकि वे इस विषय को अत्यन्त महत्वपूर्ण और गम्भीर मानते हैं, तथा इसे निर्विवाद रूप से सर्वांङ्ग सुन्दर प्रस्तुत करना चाहते हैं "सारा जगत क्रमबद्धपर्याय का सही स्वरूप समझकर अनन्त सुखी हो" यह भावना व्यक्त करते हुए उन्होंने अपनी बात समाप्त की है। प्रश्न :१४. इस कृति को लिखते समय लेखक ने क्या सजगता रखी? १५. इसे सर्वांगीण बनाने के लिए लेखक ने क्या प्रयास किये? १६. सन् १९७९ लेखक के लिए क्रमबद्धपर्याय वर्ष क्यों बन गया? १७. इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में लेखक की अन्तर-भावना क्या है? अध्याय २ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन भूमिका गद्यांश क्रमबद्धपर्याय आज दिगम्बर.............................अनुशीलन अपेक्षित है (पृष्ठ १ पैरा १ और २) विचार बिन्दु : इस गद्यांश में लेखक ने पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी द्वारा अध्यात्म जगत में किए गए क्रान्ति के शंखनाद के फलस्वरूप इस विषय के बहुचर्चित होने का उल्लेख करते हुए चिन्ता प्रकट की है, कि अभी भी इस विषय पर गहन विचार-मन्थन की प्रवत्ति का अभाव है। इस विषय को महान दार्शनिक उपलब्धि निरूपित करते हुए उन्होंने खेद व्यक्त किया है कि इसे व्यर्थ के वाद-विवाद हँसी-मजाक एवं सामाजिक राजनीतिक का विषय बना लिया गया है। वे चाहते हैं कि इस पर विशुद्ध दार्शनिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विचार किया जाए, अतः यहाँ जिनागम के परिप्रेक्ष्य में युक्ति एवं उदाहरण सहित अनुशीलन प्रस्तुत किया जा रहा है। विशेष स्पष्टीकरण :- उक्त विचार में समागत बिन्दुओं का निम्नानुसार स्पष्टीकरण किया जाए - (अ) सामाजिक राजनीति :- समाज में अनेक प्रकार के ग्रुप व पन्थ आदि प्रचलित हैं, अतः उनके पक्ष-विपक्ष से ग्रस्त होने के कारण लोग इस सिद्धान्त के पक्ष या विरोध में हो जाते हैं, इस विषय पर आगम और युक्ति के आधार पर विचार नहीं करते हैं। (ब) हँसी मजाक :- अपनी गल्तियों को छिपाने के लिए लोग क्रमबद्ध' में ऐसा ही होना था - ऐसा कहते हुए हँसकर टाल देते हैं। इस प्रवृत्ति से भगवान तुम्हारी वाणी में जैसा जो तत्त्व दिखाया है। जो होना है सो निश्चित है केवलज्ञानी ने गाया है।। उस पर तो श्रद्धा ला न सका परिवर्तन का अभिमान किया। बनकर पर का कर्ता अब तक सत् का न प्रभो सन्मान किया ।। - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : देव-शास्त्र-गुरु पूजन 12
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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