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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका जिनागम के अविनय का महादोष होता है। अतः जिनागम के किसी भी सिद्धान्त को मनोरंजन का विषय न बनायें। इसका आशय यह नहीं है कि इसकी चर्चा न करें, बल्कि यह है कि इसकी चर्चा से हास्य का पोषण न करें, अपितु पर्याय की कर्ताबुद्धि तोड़कर पर्यायों से दृष्टि हटाकर स्वभाव-सन्मुख होने का प्रयत्न करें। (स) जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में :- यद्यपि अन्य दर्शनों में भी क्रमबद्धपर्याय की बात आती है। आज अन्य मत के अनेक प्रवक्ता भी इसकी चर्चा करते देखे जाते हैं, परन्तु उनमें पूर्वापर विरोध है । जैनदर्शन में सर्वज्ञता और वस्तु व्यवस्था के आधार पर इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाता है, अतः यहाँ जिनागम में उपलब्ध प्रमाणों और युक्तियों के आधार पर क्रमबद्धपर्याय का अनुशीलन किया जा रहा है। प्रश्न :१. क्रमबद्धपर्याय के सन्दर्भ में समाज का वर्तमान वातावरण कैसा है? २. क्रमबद्धपर्याय को चर्चित करने में पूज्य स्वामीजी का क्या योगदान है? ३. समाज के वर्तमान वातावरण के सम्बन्ध में लेखक की क्या भावना है? **** क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन के उदाहरण से यह समझाया गया है, कि वस्तु का परिणमन पूर्व निश्चित और व्यवस्थित है। वह हमें अज्ञान और राग-द्वेष के कारण वह अव्यवस्थित दिखाई देता है। २. वस्तु की परिणमन-व्यवस्था की चार विशेषतायें हैं :(अ) क्रम से होना (ब) नियमित होना (स) व्यवस्थित होना (द) स्वतंत्र होना इन विशेषताओं का आशय निम्नानुसार है :(अ) वस्तु की पर्यायें क्रम से अर्थात् जिसके बाद एक होती हैं। (ब) यह परिणमन नियमित है अर्थात् जिसके बाद जो पर्याय होनेवाली है; वही होगी, अन्य नहीं। उदाहरण :- किसी सभा में छात्रों को पुरस्कार लेने के लिए बुलाया जाए, तो सभी छात्र एक के बाद एक तो आयेंगे ही, परन्तु जिसके बाद जिसको बुलाया जाएगा, वही आयेगा, अन्य नहीं; क्रम-नियमित विशेषता का यही अर्थ है। (स) वस्तु के परिणमन का नियमित क्रम, व्यवस्थित भी होता है; अर्थात् उन छात्रों को अधिक अंक प्राप्त करनेवालों के क्रम से बुलाया जाएगा । अथवा यदि किसी सभा में मञ्चासीन व्यक्तियों का स्वागत करना हो तो उसका क्रम व्यवस्थित होता है; अर्थात् सर्वप्रथम अध्यक्ष, फिर मुख्य-अतिथि, फिर उद्घाटनकर्ता फिर विशिष्ट अतिथि आदि का व्यवस्थित क्रम होना आवश्यक है। इसीप्रकार बालक, युवा और वृद्धावस्थारूप मनुष्य की अवस्था का व्यवस्थित क्रम है, इससे विपरीत क्रम असम्भव है। ३. व्यवस्थित क्या है और अव्यवस्थित क्या है? वास्तव में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का उचित समायोजन ही व्यवस्थितपने विषय-परिचय गद्यांश २ क्रमबद्धपर्याय से आशय......................दूसरे का कोई भी हस्तक्षेप नहीं है। (पृष्ठ १ पैरा ३ से पृष्ठ २ पैरा ४ तक) विचार बिन्दु : प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने क्रमबद्धपर्याय का आशय स्पष्ट करते हुए समझाया है कि प्रत्येक वस्तु का परिणमन क्रमानुसार, नियमित, व्यवस्थित और स्वतंत्र होता है। नाटक के रंगमंच पर दिखाई जानेवाली रईस की कोठी और गरीब की झोपड़ी 13
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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