SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रमबद्धपर्याय: निर्देशिका २४ का सूचक है तथा उनमें असंतुलन अव्यवस्थितपने का सूचक है। घर में प्रत्येक वस्तु निश्चित स्थान पर ही हो, प्रत्येक कार्य समय पर हो, तो वह घर व्यवस्थित है, यदि घर में वस्तुयें यथा-स्थान न हों तो वह अव्यवस्थित है। हमारी धारणा या जगत की परम्परानुसार जो कार्य समय पर हो तो हम उन्हें व्यवस्थित समझते हैं । ७०-८० वर्ष की उम्र में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए, युवावस्था में भी कोई केन्सर से चल बसे, पुरुष को दाढ़ी मूछें हों, फल व अनाज समय पर हो - यह सब हमें व्यवस्थित लगता है । परन्तु इसके विपरीत हो अर्थात् किसी युवक का हार्ट फेल हो जाए, महिला को दाढ़ीमूँछ आ जाये, सर्दियों में आम और गर्मियों में जाम पकने लगें, तो हम इसे अव्यवस्थित समझेंगे। क्रमबद्धपर्याय का सिद्धान्त कहता है कि जगत की जो-जो घटनाएँ हमें अव्यवस्थित दिखाई देती हैं, वे भी वस्तु की परिणमन व्यवस्था के व्यवस्थित क्रम में ही हैं। वे अव्यवस्थित तो हमें इसीलिए लगती हैं, कि हमारी धारणा या इच्छा वैसी नहीं है। (द) वस्तु का परिणमन, क्रम नियमित और व्यवस्थित होने के साथसाथ स्वाधीन भी है। यह ध्यान देने की बात है कि यदि हमारी इच्छानुसार वस्तु परिणमित होने लगे तो वह हमारी इच्छा के आधीन हो गई, स्वाधीन कहाँ रही, अतः स्वतंत्रता से आशय इच्छानुसार परिणमन से नहीं, अपितु वस्तु की तत्समय की योग्यतानुसार परिणमन से है। इसप्रकार 'क्रमबद्धपर्याय' से आशय प्रत्येक वस्तु के क्रमिक, नियमित, व्यवस्थित और स्वाधीन परिणमन के नियम से है । प्रश्न : ४. वस्तु के परिणमन की चारों विशेषताओं को बताते हुए प्रत्येक का आशय स्पष्ट कीजिए? 14 क्रमबद्धपर्याय: एक अनुशीलन ***** क्रमबद्धपर्याय पोषक आगम-प्रमाण गद्यांश ३ जैसा कि सर्वश्रेष्ठ. (पृष्ठ २ पैरा ५ से पृष्ठ ५ पैरा ५ तक) ..सबसे प्रबल हेतु है विचार बिन्दु : १. इस गद्यांश में लेखक द्वारा सात आगम प्रमाण प्रस्तुत किये गए हैं। २. 'क्रम' शब्द से आशय क्रमाभिव्यक्ति से है और 'नियमित' शब्द से आशय प्रत्येक पर्याय अपने स्वकाल में अपने-अपने निश्चित उपादान के अनुसार परिणमित होने से है। पर्याय के उत्पन्न होने की उसकी तत्समय की योग्यता ही निश्चय उपादान है। संक्षेप में कहा जाए तो वस्तु के सुनिश्चित क्रम में स्वाधीनरूप से परिणमन करने की व्यवस्था को क्रमबद्धपर्याय कहते हैं। ३. ‘कार्तिकेयानुप्रेक्षा' के अनुसार उक्त परिभाषा का आशय निम्नानुसार है। "जिस द्रव्य की, जिस क्षेत्र में 'जिस काल में' जो पर्याय, जिस विधि से, जिस निमित्त की उपस्थिति में होना सर्वज्ञदेव ने जाना है, उस द्रव्य की, उसी क्षेत्र में 'उसी काल में' वही पर्याय, उसी विधि से, उन्हीं निमित्तों की उपस्थिति में होगी।” वस्तु के परिणमन की इस व्यवस्था को 'क्रमबद्धपर्याय' कहते हैं । इस परिभाषा में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, पुरुषार्थ, निमित्त आदि सभी का एकत्र होना सुनिश्चित है - यह भी बताया गया है। ४. क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में सर्वज्ञता सबसे प्रबल हेतु है। ५. क्रमनियमित और क्रमबद्ध' एकार्थवाची हैं। ७. विशेष निर्देश : १. प्रत्येक आगम-प्रमाण पर समयानुसार यथा सम्भव चर्चा की जाए, तथा उपर्युक्त विचारों पर विशेष बल दिया जाए । २. नियमित शिक्षण सत्र की कक्षाओं में छात्रों से पाठ्य पुस्तक में समागत आगम प्रमाणों की तालिका (चार्ट) बनवाई जाए, जिसमें निम्न खण्ड हो
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy