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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका २. नियमित :- उन पर्यायों का क्रम नियमित अर्थात् सुनिश्चित है, अर्थात् किस समय कौन सी पर्याय होगी - यह सुनिश्चित है। परिणमन की यही विशेषता क्रमबद्धपर्याय कहलाती है। ३. व्यवस्थित :- वस्तु के परिणमन का क्रम नियमित होने के साथ-साथ व्यवस्थित भी होता है, अर्थात् द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव के सुमेल पूर्वक होता है। बीज में से अंकुर, पौधा, शाखायें, पत्ते, फूल और फल क्रमशः इसी क्रम से निकलते हैं। गेहूँ से आटा, रोटी आदि पर्यायें निश्चित क्रमानुसार होती हैं । यही नियमितक्रम का व्यवस्थितपना है। किसी सभा में अतिथियों का स्वागत सुनिश्चित और व्यवस्थित क्रम से होता है, अर्थात् अध्यक्ष, मुख्य-अतिथि, उद्घाटनकर्ता आदि का क्रम व्यवस्थित होता है। किस अतिथि का स्वागत किसकेद्वारा कराया जाए - इसका क्रम भी एक व्यवस्थित नियमानुसार होता है। ४. स्वाधीन :- वस्तु की पर्यायें उसकी तत्समय की योग्यतानुसार स्वयं होती हैं, किसी अन्य द्रव्य के या हमारी इच्छा के या किसी ईश्वर की इच्छा के आधीन नहीं होती; यही वस्तु की स्वाधीनता है। प्रश्न ६. क्रमबद्धपर्याय शब्द के प्रत्येक पद का अर्थ बताइये? उत्तर :- क्रम = एक के बाद एक, एक साथ नहीं । बद्ध = नियमित अर्थात् निश्चित, जिस समय जो पर्याय होना है वही होगी, दूसरी नहीं। पर्याय = द्रव्यों या गुणों का परिणमन। प्रश्न ७. सिद्ध कीजिए कि अव्यवस्थित दिखने वाला जगत भी व्यवस्थित है? उत्तर :- जगत् की जो घटनायें अपने प्राकृतिक नियमानुसार होती हैं, वे हमें व्यवस्थित दिखाई देती है। जैसे - सर्दी, गर्मी, बरसात, आदि समय पर होना; मौसम के अनुसार फल, अनाज आदि समय पर होना - इत्यादि । परन्तु जो घटनायें हमारी धारणा के विपरीत समय पर होती हैं, वे हमें अव्यवस्थित लगती क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर हैं। जैसे- गर्मियों में बरसात होना, सर्दियों में आम पकना, १० वर्ष के बालक को दाढ़ी-मूंछ में बाल आ जाना; बस, ट्रेन या प्लेन दुर्घटनाग्रस्त हो जाना, आग लग जाना, भूकम्प आ जाना - इत्यादि। जिसप्रकार नाटक के मञ्च पर अव्यवस्थित दिखनेवाली गरीब की झोपड़ी अव्यवस्थित दिखने पर भी पूर्वनियोजित और व्यवस्थित है; उसी प्रकार उपर्युक्त घटनायें भी पूर्व निश्चित और व्यवस्थित हैं, क्योंकि वे सर्वज्ञ के ज्ञान में पहले से ही झलक रही हैं, तथा अपने परिणमन के नियमित क्रमानुसार हो रही है। हमारी धारणा के अनुकूल न होने से वे हमें अव्यवस्थित लगती हैं, परन्तु वस्तु की परिणमन व्यवस्था में वे सब व्यवस्थित ही हैं। प्रश्न ८. क्रमबद्धपर्याय के पोषक कुछ आगम-प्रमाणों का उल्लेख कीजिए? उत्तर :- पाठ्य-पुस्तक में दिए गए आगम-प्रमाण निम्नानुसार हैं :१. समयसार गाथा ३०८-३११ की अमृतचन्द्राचार्यकृत टीका। २. कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा ३२१-३२२-३२३ । ३. आचार्य रविषेणकृत पद्मपुराण, सर्ग-११० श्लोक ४० ४. अध्यात्मपद संग्रह : भैया भगवतीदासकृत भजन, पृष्ठ ८ ५. अध्यात्मपद संग्रह : कविवर बुधजनकृत भजन, पृष्ठ ७९ ६. पण्डित जयचन्द्रजी छाबड़ा कृत मोक्ष पाहुड गाथा ८६ का भावार्थ ७. पण्डित सदासुखदासजी कासलीवालकृत रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका : श्लोक १३७ का भावार्थ । प्रश्न ९. सिद्ध कीजिए कि प्रत्येक पदार्थ का परिणमन पूर्वनिश्चित क्रमानुसार ही होता है? उत्तर :- प्रत्येक द्रव्य के अनन्तगुणों और उनकी त्रिकालवर्ती पर्यायों को सर्वज्ञ भगवान प्रत्यक्ष जानते हैं तथा जैसा भगवान जानते हैं वैसा ही वस्तु का परिणमन होता है। इसप्रकार वस्तु का परिणमन सर्वज्ञ के ज्ञान में पहले से ही ज्ञात होने से यह सिद्ध होता है कि वस्तु का परिणमन पूर्व निश्चित क्रमानुसार ही होता 51
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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