SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ९७ अध्याय ४ क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर यद्यपि विगत तीन अध्यायों में क्रमबद्धपर्याय पुस्तक के अनुशीलन एवं प्रश्नोत्तर खण्ड में समागत प्रमुख विचार-बिन्दुओं की चर्चा की गई है, एवं उनसे सम्बन्धित संक्षिप्त प्रश्न भी दिए गए हैं; तथापि ८-१० दिन के शिविर में इस महत्वपूर्ण विषय को पढ़ाने के उद्देश्य से यहाँ मूल विषय से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर दिए जा रहे हैं। अतः प्रवचनकारों एवं अध्यापक बन्धुओं से सानुरोध आग्रह है कि इन प्रश्नोत्तरों के आधार से विषय का स्पष्टीकरण करते हुए इन्हें छात्रों को हृदयंगम कराने का प्रयास करें तथा इन प्रश्नोत्तरों को कन्ठस्थ करने की प्रेरणा दें। उत्तर :- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का परस्पर सुमेल होना व्यवस्थित है, और सुमेल न होना अव्यवस्थित है। जैसे - किसी विद्यार्थी के कमरे में, कपड़े हेंगर पर टंगे हों, पुस्तकें अलमारी में हों तथा अन्य सभी वस्तुएँ यथास्थान हों तो उसका कमरा व्यवस्थित कहा जाएगा, और यदि पुस्तकें पलंग पर हों, कपड़े कुर्सी पर टंगे हों, अन्य वस्तुएँ भी यहाँ-वहाँ बिखरी पड़ी हों, तो उसका कमरा अव्यवस्थित कहा जाएगा। इसीप्रकार पढ़ने के समय खेलना, खेलने के समय पढ़ना, पूजन के समय स्वाध्याय तथा स्वाध्याय के समय पूजन आदि कार्य अव्यवस्थित कहे जायेंगे। निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि सभी काम उचित समय पर उचित व्यक्ति के द्वारा उचित स्थान पर उचित विधि से करना व्यवस्थित कहा जाएगा और इससे विपरीत होने पर अव्यवस्थित कहा जाएगा। प्रश्न ४. क्रमबद्धपर्याय की चर्चा करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? उत्तर :- प्रत्येकवस्तु सत् अर्थात् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप है। अतः परिणमन करना वस्तु का सहज स्वभाव है। वस्तु में प्रतिसमय नई-नई पर्यायें उत्पन्न होती हैं, पूर्व पर्यायों का व्यय होता है, तथा इस प्रक्रिया में वस्तु शाश्वत ध्रुवरूप रहती है। उपर्युक्त परिणमन-स्वभाव के सन्दर्भ में यह प्रश्न उठना स्वभाविक है कि वस्तु कब, किसरूप में परिणमित होगी - इसका कोई सुनिश्चित नियम है या हम जब जैसा चाहें वैसा परिणमन कर सकते हैं? इसी प्रश्न का उत्तर क्रमबद्धपर्याय के सिद्धान्त के माध्यम से दिया जाता है। प्रश्न ५. वस्तु के परिणमन की प्रमुख विशेषतायें बताइये? उत्तर :- प्रत्येक पदार्थ का परिणमन, क्रमशः, नियमित, व्यवस्थित और स्वाधीन होता है। इन विशेषताओं का संक्षिप्त भाव नियमानुसार है : १. क्रमश :- एक के बाद एक अर्थात् प्रत्येक गुण की त्रिकालवर्ती पर्यायें अपने-अपने स्वकाल में एक के बाद एक होती है। प्रश्न १. क्रमबद्धपर्याय क्या है? द्रव्य/गुण/पर्याय उत्तर :- क्रमबद्धपर्याय किसी एक द्रव्य या गुण या पर्याय का नाम नहीं, अपितु समस्त द्रव्यों और गुणों के परिणमन की सुव्यवस्थित व्यवस्था अर्थात् वस्तु के परिणमन की व्यवस्था है। प्रश्न २. क्रमबद्धपर्याय किसे कहते हैं? उत्तर :- “जिस द्रव्य की, जिस क्षेत्र में, जिस काल में, जो पर्याय जिस निमित्त की उपस्थिति में, जिस पुरुषार्थ पूर्वक, जैसी होनी है; उसी द्रव्य की, उसी क्षेत्र में, उसी काल में, वही पर्याय, उसी निमित्त की उपस्थिति में, उसी पुरुषार्थपूर्वक, वैसी ही होगी, अन्यथा नहीं । वस्तु के परिणमन की इस व्यवस्थित व्यवस्था को क्रमबद्धपर्याय कहते हैं। प्रश्न ३. व्यवस्थित और अव्यवस्थित से क्या आशय है? 50
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy