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________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका क्रमबद्धपर्याय : कुछ प्रश्नोत्तर ६. द्रव्य-पर्यायात्मक वस्तु में सम्यक्-अनेकान्त तथा उसके द्रव्य या पर्याय अंश में सम्यक्-एकान्त घटित होता है। क्रमबद्धपर्याय में पर्यायों की चर्चा है, अतः पर्यायें क्रमबद्ध ही होती है, और गुण भी वस्तु के अंश हैं, अतः वे अक्रमरूप ही हैं - ऐसा सम्यक् एकान्त घटित होता है। ___ गुण-पर्यायात्मक वस्तु में अक्रमवर्ती गुण और क्रमवर्ती पर्याय - ऐसा अनेकान्त घटित होता है, अतः क्रमाक्रमरूप अनेकान्त भी गुण-पर्यायात्मक वस्तु में घटित करना चाहिये, अकेली पर्याय में नहीं। प्रश्न १४ गर्भित आशय :- अकालमृत्यु के सन्दर्भ में ऐसा अनेकान्त घटित किया गया था कि उदीरणा या अपकर्षण से होने वाले मरण की अपेक्षा अकालमृत्यु है, तथा केवलज्ञान की अपेक्षा स्वकाल मृत्यु है; तो फिर क्रमबद्धपर्याय में ऐसा अनेकान्त घटित क्यों नहीं हो सकता कि केवलज्ञान की अपेक्षा पर्यायें क्रमबद्ध हैं और छद्मस्थ की अपेक्षा अक्रमबद्ध हैं? उत्तर : १. अकालमृत्यु के सन्दर्भ में मात्र यह कहा गया था कि उदीरणा या अपकर्षण से होने वाले मरण की अपेक्षा अकालमृत्यु कही जाती है, हुई तो वह स्वकाल में ही है। वह अपने स्वकाल में न होकर आगे-पीछे हुई है - ऐसा उसका आशय नहीं है। २.क्रमबद्धपर्याय के सन्दर्भ में आइन्सटीन का निम्न कथन विचारणीय है प्रश्न १५, १६ एवं १७ गर्भित आशय :- प्रवचनसार में अकालनय की चर्चा आती है; जिससे यह सिद्ध होता है कि कृत्रिम गर्मी से पकाये गए आम की भाँति कार्य की सिद्धि अकाल में भी होती है, अतः अकालनय और क्रमबद्धपर्याय में परस्पर विरोध आता है। उत्तर : १. जिसप्रकार अकालमृत्यु के प्रकरण में अकाल शब्द का अर्थ काल से भिन्न अन्य समवाय है, उसीप्रकार अकालनय में अकाल शब्द का अर्थ काल से भिन्न अन्य समवाय है। 'कृत्रिम गर्मी से आम पकाया गया', इसमें स्वकाल का निषेध नहीं है, अर्थात् वह समय से पूर्व पक गया - ऐसा नहीं है, अपितु यह निमित्त की मुख्यता से कथन है। यदि कृत्रिम गर्मी से ही आम पकते हों तो सभी आम एक साथ क्यों नहीं पक जाते? तथा एक आम को पकने में एक निश्चित समय क्यों लगता है? इससे सिद्ध हुआ कि कृत्रिम गर्मी से पकने वाला आम भी अपने स्वकाल में ही पकता है, समय से पहले नहीं। जिसप्रकार जीव से भिन्न पुद्गलादि पाँच द्रव्यों को अजीव कहा जाता है उसी प्रकार काल से भिन्न निमित्तादि अन्य चार समवायों को अकाल कहा जाता है। लोक में भी जैन से भिन्न अन्य धर्मावलम्बियों को अजैन कहा जाता है। जो आम, जिस जगह, कृत्रिम गर्मी से जितने दिन में पकना है वही आम उसी जगह, कृत्रिम गर्मी से ही, उतने ही दिन में पकेगा - यह नियम उसकी परिणमन व्यवस्था में शामिल है। अतः अकालनय और क्रमबद्धपर्याय में कोई विरोध नहीं है। यह हो सकता है कि अकाल का यह अर्थ हमारी धारणा से विपरीत होने से हमें नया लगता हो, परन्तु हमें इस पर गम्भीरता से विचार करके वस्तु व्यवस्था का निर्णय करना चाहिए। घटनायें घटती नहीं, वे पहले से ही विद्यमान हैं तथा कालचक्र पर देखी जाती हैं। प्रश्न १८ गर्भित आशय :- भविष्य को सर्वथा निश्चित मानने पर भावी दुर्घटनाओं का पता चलने पर जगत भयभीत हो जायेगा और उन्हें टालने का प्रयत्न असफल जानकर असहाय और निराश हो जाएगा, जिससे उसका मनोबल टूट जायेगा, 48
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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