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क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका
होने वाली थी और आपने उसे उत्पन्न किया है, यह निर्णय कैसे होगा? जिस पर्याय को उत्पन्न करने का अभिमान आप कर रहे हैं, यदि यही पर्याय हुई है तो निश्चित ही वही होनी थी अन्यथा वह होती ही नहीं। उसका उत्पन्न होना ही उसका निश्चित स्वकाल सूचित करता है।
इसप्रकार भविष्य की पर्यायों में भी परिवर्तन करना सम्भव नहीं है। अतः यही स्वीकार करना श्रेष्ठ है कि प्रत्येक द्रव्य अपने क्रमनियमित परिणामों से उत्पन्न होता हुआ निजरूप ही रहता है, पररूप नहीं होता।
उक्त सन्दर्भ में निम्न शंका-समाधान भी ध्यान देने योग्य है।
शंका :-समयसार की उक्त गाथाओं की टीका में "जीव क्रमनियमित ऐसे अपने परिणामों से उत्पन्न होता हुआ जीव ही है” - ऐसा क्यों कहा है। द्रव्य तो अनादि-अनन्त है, अतः वह कैसे उत्पन्न हो सकता है?
समाधान :- "क्रमनियमित परिणाम में" का अर्थ यह है कि पर्याय की अपेक्षा देखा जाए तो द्रव्य उत्पन्न होता है। अपने स्वकाल में उत्पन्न होनेवाली पर्यायरूप परिणमित होना ही द्रव्य का उसरूप में उत्पन्न होना है। अतः यह कथन पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा समझना चाहिए।
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प्रश्न २ से६ गर्भित आशय :- यदि कोई द्रव्य किसी को नहीं परिणमाता तो परिणमन कौन कर जाता है? यदि कभी वस्तु का परिणमन रुक जाये या कभी जल्दी-जल्दी होने लगे या कभी धीरे-धीरे होने लगे, तो इस गड़बड़ी को कौन दूर करेगा? द्रव्य में ऐसी कौन सी शक्तियाँ हैं जिनसे यह व्यवस्था व्यवस्थित रहती है? उत्तर :
१. ध्रुवता के समान परिणमन करना भी द्रव्य का नित्य स्वभाव है, अतः कभी भी परिणमन रुकने का प्रश्न ही नहीं उठता। प्रत्येक पर्याय एक समय की ही
क्रमबद्धपर्याय : कुछ प्रश्नोत्तर होती है, अतः जल्दी या देरी होने की कोई समस्या नहीं है।
२. प्रत्येक द्रव्य में निरन्तर अनन्त शक्तियाँ उल्लसित होती रहती हैं, जिनमें भाव, अभाव आदि छह शक्तियों के कारण द्रव्य की परिणमनव्यवस्था व्यवस्थित रहती है। उनका स्वरूप निम्नानुसार है - (1) भावशक्ति :- द्रव्य में प्रतिसमय उसकी निश्चित अवस्था अवश्य ही
होती है। (II) अभाव शक्ति :- वर्तमान पर्याय के अलावा कोई अवस्था उत्पन्न
नहीं होती। (III) भावाभाव शक्ति :- वर्तमान पर्याय का आगामी समय में नियम से
अभाव होता है। (IV) अभाव-भाव शक्ति :- आगामी समय में होने वाली पर्याय अपने
समय में नियम से उत्पन्न होती है। (V) भावभाव शक्ति :- जो पर्याय जिस समय होना है, वह उस समय
अवश्य होगी। (VI) अभावाभाव शक्ति :- जो पर्याय जिस समय नहीं होना है, वह उस
समय नहीं होगी।
उक्त छह शक्तियों का समूह यह सुनिश्चित करता है कि जिस द्रव्य की जो पर्याय, जिस समय, अपने उपादान के अनुसार जिस विधि से होनी है, वह स्वयं नियम से उस समय वैसी ही होती है, उसमें पर की अपेक्षा रञ्चमात्र भी नहीं होती। _ विशेष निर्देश :- उक्त शक्तियों के कार्य को तात्कालिक घटनाओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है।
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प्रश्न ७ गर्भित आशय :- यदि हम अपनी पर्यायों के क्रम में भी परिवर्तन नहीं कर सकते तो हम उसके कर्ता भी नहीं रहेंगे? क्योंकि कर्ता होने का मतलब तो
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