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________________ अध्याय ३ क्रमबद्धपर्याय : कुछ प्रश्नोत्तर "क्रमबद्ध पर्यायः एक अनुशीलन” की चर्चा समाज में सघनरूप से चलने लगी, अतः इस सम्बन्ध में अनेक प्रश्न आने लगे। यद्यपि अनुशीलन खण्ड में इस विषय के सभी सम्भावित पहलुओं पर पर्याप्त चर्चा हो चुकी है, तथापि इन प्रश्नों पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि विषय का सर्वाङ्गीण स्पष्टीकरण हो सके। अनुशीलन खंड के निर्देशों में सम्पूर्ण निबंध में चर्चित विचार-बिन्दु और उनसे सम्बन्धित प्रश्न दिये गये थे, ताकि उन प्रश्नों के सन्दर्भ में विचार-विश्लेषण की क्षमता विकसित हो सके। यहाँ प्रश्नोत्तर खण्ड में प्रश्न में गर्भित आशय एवं उत्तर के प्रमुख विचार बिन्दुओं का संक्षिप्त उल्लेख किया जा रहा है। क्रमबद्धपर्याय : कुछ प्रश्नोत्तर ३. पर्यायों में परिवर्तन की भी एक मर्यादा है, और वह भी नियमित है, वे हमारी इच्छानुसार नहीं, बल्कि अपने निश्चित क्रमानुसार बदलती है। ४. यद्यपि जीव अपने परिणामों का कर्ता है, तथापि उनके करने का बोझा उसके माथे पर नहीं है, क्योंकि वह परिणमन भी सहज और नियमित क्रम में होता है। परिणमन को निश्चित बताकर द्रव्य-गुण का अधिकार कम नहीं किया गया है, अपितु बोझा हटाया गया है, क्योंकि वह अपने परिणामों का अधिकृत कर्ताभोक्ता तो है ही। ५. द्रव्य और गुण के समान पर्याय भी सत् है, परन्तु परिणमनशील होने से अज्ञानी उसमें इच्छानुसार परिवर्तन करना चाहता है। पर्याय भी स्वकाल की सत् है, अतः उसमें कोई फेरफार करना सम्भव नहीं है - ऐसी श्रद्धा करने से उनमें फेरफार की बुद्धि नहीं रहेगी। ६. जो लोग पर्यायों के क्रम में परिवर्तन करना चाहते हैं, उन्हें विचार करना चाहिए कि अनादि-अनन्त प्रवाहक्रम में भूतकाल की पर्यायें तो उत्पन्न होकर नष्ट हो चुकीं, अतः उनमें परिवर्तन करने का प्रश्न ही नहीं उठता; तथा वर्तमान पर्यायें तो उत्पन्न हो ही गईं, उनका काल भी एक समय का है. अतः उन्हें उखाड़ फेंकना सम्भव नहीं है। वे उत्पन्न होने के असंख्य समय बाद हमारे ज्ञान में आती हैं, अतः जब तक हम उन्हें जानेंगे तब तक वे नष्ट हो चुकी होती हैं, अतः वर्तमान पर्यायों में भी फेर-फार सम्भव नहीं है। इसीप्रकार भविष्य की पर्यायें अभी उत्पन्न ही नहीं हुईं। अतः उन्हें बदलना सम्भव नहीं है। यदि कोई यह कहे कि हम चुन-चुन कर अच्छी पर्यायें लायेंगे, तो निम्न आपत्तियाँ उपस्थित होंगी: अ) कौन सी पर्यायें अच्छी हैं और कौन सी बुरी? इसका निर्णय कौन करेगा? ब) भविष्य में कौन सी पर्याय आएगी - यह तो हमें पता नहीं, फिर उसे रोककर दूसरी पर्याय उत्पन्न करने का प्रयत्न कैसे करेंगे? जो पर्याय होगी वह नहीं प्रश्न १ गर्भित आशय :- क्रमबद्धपर्याय के समर्थन में सर्वप्रथम आगम प्रमाण में श्री समयसार गाथा ३०८ से ३११ गाथा की टीका की पंक्तियाँ प्रस्तुत की गई हैं। परन्तु वहाँ तो मात्र जीव-अजीव की भिन्नता की बात कही गई है, उसमें क्रमबद्धपर्याय का पोषण कैसे होता है? उत्तर : १.जीव और अजीव अपने-अपने क्रमनियमित परिणामों से उत्पन्न होते हुए..... इस वाक्यांश में परिणामों का विशेषण 'क्रमनियमित' कहा गया है। २. प्रत्येक द्रव्य के परिणमन को निश्चित क्रम में अर्थात् पूर्ण व्यवस्थित और निश्चित बताकर जीव को अकर्ता सिद्ध किया गया है। 43
SR No.008357
Book TitleKrambaddha Paryaya Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size244 KB
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