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क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन
क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका - इसी शाश्वत सत्य के आधार पर पराधीनता और दीनता नष्ट होती है।
७. यदि उक्त कथन को सार्वभौमिक सत्य न माना जाए तो निम्न प्रश्न खड़े होते हैं?
क्या असत्य के श्रद्धान से गृहीत मिथ्यात्व छूटेगा?
क्या कोई कार्य समय से पहले किया जा सकता है? निश्चित समय स्वीकार किये बिना समय से पहले का क्या अर्थ है? समय से पहले कार्य होने में पुरुषार्थ हो तो जो कार्य निश्चित समय पर होते हैं क्या वे बिना पुरुषार्थ के होते हैं?
८. उक्त प्रश्नों केसन्दर्भ में विचार किया जाए तो क्रमबद्ध परिणमन व्यवस्था शाश्वत सत्य सिद्ध होती है। अन्यथा सर्वज्ञता के निषेध का प्रसंग तो आता ही है।
९. क्रमबद्ध पर्याय की स्वीकृति में पुरुषार्थ की उपेक्षा कहीं नहीं है । सर्वत्र पुरुषार्थ को साथ में रखा गया है। जब सभी पर्याय निश्चित हैं तो पुरुषार्थ अनिश्चित कैसे होगा? वह तो स्वयं ही निश्चित हो गया।
१०. होनहार के प्रकरण में भी भैया भगवतीदास जी ने पुरुषार्थ की प्रेरणा दी है।
११. पाँचों समवायों में पुरुषार्थ का विशिष्ट स्थान है, क्योंकि उसी सन्दर्भ में प्रयत्न हो सकता है, अन्य समवायों में तो प्रयत्न करने का उपचार भी सम्भव नहीं है। क्रमबद्धपर्याय की स्वीकृति में सम्यक्-एकान्त है, अतः पुरुषार्थ का लोप नहीं हो सकता। प्रश्न :७०, कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कथित क्रमबद्ध व्यवस्था शाश्वत सत्य नहीं है - इस मान्यता
का तर्क सहित खण्डन कीजिए? ७१. क्रमबद्धपर्याय को स्वीकार करने पर पुरुषार्थ का लोप क्यों नहीं होता? ७२. काल को नियत न मानने पर क्या आपत्ति आएगी?
पुरुषार्थ एवं अन्य समवायों का सुमेल
गद्यांश २७ आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी... ................कुछ भिन्न ही है।
(पृष्ठ ५२ एवं ५३) विचार बिन्दु :
१. आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी ने एक प्रश्न केमाध्यम से पाँचोंसमवाय का प्रकरण उठाते हुए एक कारण में अनेक कारण मिलते हैं यह नियम बताकर पाँचों समवायों का सुमेल स्थापित किया है।
अ) “तथा पुरुषार्थ से उद्यम करते हैं - यह आत्मा का कार्य है, इसलिए आत्मा को पुरुषार्थ से उद्यम करने का उपदेश देते हैं।" इस कथन में उन्होंने पुरुषार्थ की मुख्यता स्थापित की है।
ब) वहाँ यह आत्मा जिस कारण से कार्य सिद्धि अवश्य हो उस कारणरूप उद्यम अवश्य करे, वहाँ तो अन्य कारण मिलते ही मिलते हैं और कार्य की सिद्धि होती ही होती है" । इस कथन में स्पष्ट किया गया है कि पुरुषार्थ करने वाले को अन्य समवाय भी मिलते हैं। ___स) “जो जीव पुरुषार्थ से जिनेश्वर के उपदेशानुसार मोक्ष का उपाय करता है उसके काललब्धि व होनहार भी हुए और कर्म के उपशमादि हुए हैं, तो वह ऐसा उपाय करता है......” इस गद्यांश में भी पुरुषार्थी को अन्य समवाय मिलने की गारन्टी दी गई है।
पुरुषार्थ भी अन्य समवायों के अनुसार ही होता है। पंच समवायों में कोई परस्पर संघर्ष नहीं है, अपितु अद्भुत सुमेल है। इस सुमेल को निम्न प्रश्नोत्तरों से समझा जा सकता है।
प्रश्न :- सम्यग्दर्शन किसे होता है? उत्तर :- सम्यग्दर्शन निकट भव्य जीव को होता है। प्रश्न :- सम्यग्दर्शन कैसे उत्पन्न होता है?
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