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________________ रत्नत्रयधारी सच्चे गुरु का जीवन १९५ उत्तर भारत तीर्थंकरों की जन्मभूमि तो है ही, यहाँ अतिशय क्षेत्र भी सर्वाधिक हैं। अतिशय का अर्थ कोई चमत्कार-विशेष नहीं, बल्कि यहाँ अतिशयकारी ऐसे-ऐसे विशाल चित्ताकर्षक-कलापूर्ण जिनबिम्ब हैं, जिनके दर्शन कर दर्शनार्थी आश्चर्यचकित होता है। ये ही मुख्यतः यहाँ के अतिशय हैं। संभव है, स्थानीय स्तर पर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कभी कोई घटनायें हुई हों, पर आज उनका कहीं/कोई अस्तित्व नहीं है। वे केवल किंवदन्तियाँ बनकर ही रह गई हैं। अस्तुः । यहाँ के श्रावक-श्राविकाओं में बाह्याचार भी कुछ अधिक ही है। इन कारणों से दक्षिण भारत के मुनियों का भी विहार यहाँ (उत्तर भारत) में होता ही रहता है। देवगढ़ का चातुर्मास समाप्त हुआ। मुनिसंघ ने वहाँ से प्रस्थान कर अतिशय क्षेत्र थूवोनजी, खन्दारगिरी - चन्देरी, विशाल तीर्थक्षेत्र पपौराजी, आहारजी, सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि, सिद्धक्षेत्र नैनागिरि, प्रसिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर, अपनी कलाकृति के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र खजुराहो आदि आस-पास के अतिशय क्षेत्रों की वन्दना करता हुआ एवं तत्त्वज्ञान की रिम-झिम वर्षा से धर्म पिपासुओं की प्यास बुझाता हुआ, कषायों की प्रज्वलित ज्वाला को शान्त करता हुआ वही मुनिसंघ सेरोनजी (शान्तिनाथ दि. जैन अतिशय क्षेत्र) पहुँचा। वहाँ विराजित १००८ भगवान शान्तिनाथ की १८ फुट उत्तंग, अत्यन्त मनोहारी मूर्ति के दर्शन कर मुनि संघ ने परम शान्ति का अनुभव तो किया ही साथ ही लगभग २९ भव्य प्राचीन जैन मन्दिर तथा नवनिर्मित एक मनोहारी वर्तमान चौबीसी के दर्शनों से भी मन मुद्रित हो गया । इनके सिवाय आस-पास की जमीन में खुदाई में उपलब्ध खण्डित मूर्तियों का एक पुरातत्त्वीय विशाल संग्रहालय भी दर्शनीय है। ___वैसे तो प्रायः सभी तीर्थ क्षेत्र नगरों से न अति दूर हैं और न अति निकट । इसकारण तीर्थों का वातावरण प्रायः शान्त और एकान्त रहता है। इसीकारण साधु-संतों को आत्म-साधना और प्रभु आराधना के अनुकूल भी रहता है। सेरोनजी भी इन्हीं सब विशेषताओं के कारण मुनिसंघ को चातुर्मास के लिए उपयुक्त लगा। शान्ति के सिंधु, समता के पुंज, निर्वाण के वांछक, अध्यात्म एवं आनन्द की विद्या के आराधक, धर्म के भूषण मुनिराजों के दर्शन और उनका सान्निध्य पाकर कौन धर्मात्मा धन्य नहीं होगा? अपने मानव जीवन को कौन सार्थक नहीं करना चाहेगा? देवगढ़ में चातुर्मास के समय मुनिसंघ के द्वारा प्रवाहित ज्ञानगंगा में डुबकियाँ लगाने से तत्त्वज्ञान की वर्षा से कषायाग्नि की तपन बुझाने एवं शीतलता प्राप्त करने का आशातीत लाभ तो मिला ही, तत्त्वज्ञान की शीतल हवाओं की ठंडक तथा सदाचार के सुमनों की सुगंध भी दूर-दूर तक फैल गई? इस कारण अगला चातुर्मास कहाँ होगा? किन्हें यह सौभाग्य प्राप्त होगा? यह जिज्ञासा जन-जन के हृदयों को आन्दोलित कर रही थी; पर सेरोनजी को यह सौभाग्य सहज प्राप्त हो गया। उपर्युक्त सभी तीर्थों के कार्यकर्ताओं की भावना थी कि मुनिसंघ हमारे तीर्थ पर ही अगला चातुर्मास करे, परन्तु चाहने से क्या होता है? होता तो वही है जो क्रमबद्धपर्याय के अनुसार पहले से ही सुनिश्चित होता है। मुस्लिम धर्म में भी ऐसा ही कहा है कि - ‘होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है।' तथा हिन्दु धर्म इसी बात को ऐसे कहता है कि - 'हुइये वही जो राम रचि रखा। चूँकि वे ईश्वरवादी धर्म हैं अतः खुदा की मर्जी और ईश्वर की रचना पर छोड़ अपने कर्तृत्व के अहंकार एवं मद 98
SR No.008347
Book TitleChalte Phirte Siddho se Guru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size400 KB
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