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चलते फिरते सिद्धों से गुरु मंगल आशीर्वाद प्रस्तुत पुस्तक 'चलते-फिरते सिद्धों से गुरु' धर्मानुरागी पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल ने बड़े ही मनोयोग से और वह भी पूर्णत: आगमानुकूल लिखी है। इसमें भी उन्होंने नयों का सुन्दर विवेचन किया है। वे इसीलिए इतना प्रामाणिक लिख पाते हैं; क्योंकि उनको नयों का विशद ज्ञान है।
नयज्ञान के कारण उनको आचार्यकल्प भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वास्तव में उनको इतना अधिक शास्त्रज्ञान है कि जो किसी साध को ही सम्भव है। उनके ठोस ज्ञान का कारण एक यह भी है कि उन्होंने प्रारम्भ से ही पण्डित गोपालदासजी बरैया द्वारा स्थापित मुरैना विद्यालय में जैनदर्शन के मूल ग्रन्थों का विधिवत् अध्ययन किया है। वे अत्यन्त सरल स्वभावी और भद्रपरिणामी भी हैं। वे निरन्तर मोक्षमार्ग में आगे बढ़ते रहें - यही मेरा उनको मंगल आशीर्वाद है।
आशीर्वाद (आचार्य विद्यानन्द मुनि) खारवेल सत्संग भवन, नई दिल्ली-११००६७
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