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________________ 134 छहढाला का सार सातवाँ प्रवचन की भाषा को देखकर यह तत्त्वोपदेश दिया है। इसप्रकार वे इस छहढाला ग्रन्थ को तत्त्वोपदेश का ग्रन्थ मानते हैं। अन्त में अपनी लघुता प्रगट करते हुये लिखते हैं कि अल्पबुद्धि और प्रमाद के वश होकर कहीं शब्दों के प्रयोग में अथवा पदार्थ के प्रतिपादन में कोई भूल रह गई हो तो सुधी अर्थात् बुद्धिमान लोगों से प्रार्थना है कि वे सदा गलती को सुधार कर इसको पढ़ो। यदि आप ऐसा करोगे तो संसार समुद्र का किनारा प्राप्त कर लोगे। अंकानाम् वामतो गतिः - अंक बाईं ओर से गमन करते हैं, चलते हैं। इस नियम के अनुसार इक नव वसु इक का अर्थ 1891 होता है। इससे यह सहज ही स्पष्ट है कि इस कृति की रचना विक्रम संवत् 1891 में हुई थी। (68)
SR No.008345
Book TitleChahdhala Ka sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherDigambar Jain Vidwatparishad Trust
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size237 KB
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