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छहढाला का सार
पाँचवाँ प्रवचन
उसीप्रकार इन बारह भावनाओं के चिन्तन से समतारूपी सुख जागृत हो जाता है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में इन बारह भावनाओं को आनन्द-जननी कहा गया है। इसप्रकार यह सुनिश्चित हुआ कि जो चिन्तन वैराग्य-वर्धक हो, आनन्द-जनक हो; वही चिन्तन बारह भावनाओं की श्रेणी में आता है। जिस चिन्तन से भय जागृत हो, आकुलता उत्पन्न हो; वह चिन्तन और चाहे जो कुछ हो, पर बारह भावना (अनुप्रेक्षा) तो कदापि नहीं।
उक्त सन्दर्भ में मैं कविवर पण्डित भूधरदासजी द्वारा लिखित सर्वाधिक प्रचलित बारह भावनाओं में से अनित्य और अशरण भावना सम्बन्धी छन्दों को प्रस्तुत करना चाहता हूँ; जो इसप्रकार हैं -
राजा राणा छत्रपति हाथिन के असवार । मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बार ।। दल-बल देवी-देवता, मात-पिता परिवार ।
मरती विरिया जीव को कोई न राखनहार ।। उक्त दोनों भावनाओं में मृत्यु की चर्चा है। कहा गया है कि एक न एक दिन सभी को मरना होगा और हजार प्रयत्न करने पर भी कोई बचा नहीं पायेगा।
इसप्रकार ‘मरना होगा' - यह अनित्य भावना हुई और कोई बचा नहीं पायेगा' - यह अशरण भावना हुई।
यदि यह पढ़ते-पढ़ते हमारे दिल में घबराहट होती है तो समझ लेना चाहिये कि यह अनित्य और अशरण भावना का चिन्तन नहीं है; क्योंकि अनित्य और अशरण भावना के चिन्तन से तो आनन्द की उत्पत्ति होना चाहिये, वैराग्य की उत्पत्ति होना चाहिये; पर हमें आनन्द और वैराग्य न होकर घबराहट होती हैं।
यद्यपि इसमें एक दिन शब्द लिखा है; तथापि क्या हम सबको एक
ही दिन साथ-साथ ही मरना है ? नहीं, कदापि नहीं। एक दिन का वास्तविक अर्थ एक न होकर एक न एक दिन है। एक न एक दिन अर्थात् कभी न कभी हम सबको मरना ही होगा।
अरे भाई ! 'कभी न कभी' तो ठीक है, पर आखिर कब ?
इस प्रश्न के उत्तर में लिखा गया है कि अपनी-अपनी बार । तात्पर्य यह है कि जब आपका नम्बर आयेगा, तब । इसका तो सीधा-सा अर्थ यह है कि सभी का नम्बर लगा है, मरने का समय सुनिश्चित है। ___ यदि बात यह है तो इसका अर्थ तो यह हुआ कि दुनिया की कोई शक्ति हमें समय से पहले नहीं मार सकती। इसप्रकार यह बात मृत्यु का सन्देश नहीं, जीवन की गारंटी है।
जब हमें इस भावना के चिन्तन में मृत्यु का संदेश नहीं, जीवन की गारंटी दिखाई देगी तो फिर घबराहट क्यों होगी ? फिर तो परम सन्तोष होगा।
अभी तक तो इसे यह चिन्ता थी कि मुझे कोई मार न दे; पर उक्त चिन्तन के आधार पर जब उक्त चिन्ता कुछ कम होती है तो यह सोचने लगता है कि समय के पहले तो मैं नहीं मरूँगा; परन्तु क्या यह नहीं हो सकता है कि समय आने पर भी मेरा मरण न हो ? तदर्थ अनेक उपाय करने लगता है। उक्त मनस्थिति से उबरने के लिये अशरण भावना में कहा गया है कि -
मरती विरियाँ जीव को कोई न राखनहार । तात्पर्य यह है कि जब मृत्यु का समय आ जायेगा, तब दुनिया की कोई भी शक्ति नहीं बचा सकती। अत: इस दिशा में सक्रिय में होने से कोई लाभ नहीं।
'समय के पहले हमें कोई मार न दे' - इस भय से हमने सुरक्षा के
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