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छहढाला कासार पहला प्रवचन
(सोरठा) तीन भुवन में सार, वीतराग-विज्ञानता।
शिवस्वरूपशिवकार, नहूँत्रियोगसम्हारिकै।। कल्याणस्वरूप और कल्याण करनेवाला वीतराग-विज्ञान तीन लोकों में सारभूत है; अत: मैं उसे मन-वचन-काय को सम्हालकर नमस्कार करता हूँ।
छहढाला के मंगलाचरण का उक्त छन्द पण्डित टोडरमलजी के मोक्षमार्गप्रकाशक के मंगलाचरण का ही प्रतिरूप है।
मोक्षमार्गप्रकाशक के मंगलाचरण में भी वीतराग-विज्ञान को नमस्कार किया गया है तथा उसे मंगलमय और मंगल को करनेवाला बताया गया है। इस मंगलाचरण के छन्द में भी यही बात कही गई है। मोक्षमार्गप्रकाशक का मंगलाचरण इसप्रकार है
(दोहा) मंगलमय मंगलकरण, वीतराग-विज्ञान ।
नमो ताहि जाते भये, अरहंतादि महान ।। जिसके आश्रय से अरहंत भगवान अरहंत बने, वह वीतराग-विज्ञान मंगलमय और मंगल करनेवाला है। मैं उस वीतराग-विज्ञान को नमस्कार करता हूँ।
यह तो आप जानते ही हैं कि दोहा के पदों का स्थान परिवर्तन कर देने से सोरठा बन जाता है। मोक्षमार्गप्रकाशक के दोहारूप मंगलाचरण को सोरठा छन्द में इसप्रकार बदला जा सकता है -