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________________ प्रकाशकीय श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल जैसे मनीषी विद्वान के चुने जाने से इस पद की गरिमा में चार चांद लग गए हैं। आपके कार्यकाल में कुछ ऐसे कार्य हुए हैं, जिन्हें युगों-युगों तक याद किया जाएगा और इतिहास के पन्नों पर उन्हें स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। वर्तमान दिगम्बर सन्तों में सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज आगम ग्रंथों के निष्णात सन्त हैं, जिनके सान्निध्य में 'समयसार सप्ताह' का आयोजन अद्भुत प्रयोग था, जो आशातीत सफलता के साथ सम्पन्न हआ। इससे उत्साहित होकर डॉ. भारिल्लजी ने नवम्बर २००६ से अक्टूबर २००७ तक छहढाला वर्ष मनाने की घोषणा की। फलत: दिल्ली के सरजमल विहार में १० से १९ नवम्बर २००६ तक सात दिवसीय छहढाला शिविर सम्पन्न हुआ, जिसमें डॉ. भारिल्लजी ने प्रथम बार सार्वजनिक रूप से छहढाला पर मार्मिक प्रवचन किए और उसके उपरान्त श्री टोडरमल स्मारक भवन जयपुर में भी इसीप्रकार के प्रवचनों का आयोजन किया गया। आपके उक्त प्रवचनों का सार रूप ही है यह 'छहढाला का सार' जिसे पुस्तकाकार रूप में प्रकाशन का निश्चय विद्वत्परिषद् द्वारा किया गया। डॉ. भारिल्ल की साहित्यसाधना को दृष्टिगत रखते हुए आचार्य श्री विद्यानन्दजी लिखते हैं - "डॉ. भारिल्लजी का बीसवीं शताब्दी के जैन इतिहास में अनन्य योगदान रहा है। विद्ववर्य महामनीषी पण्डित गोपालदासजी बरैया की परम्परा के वे अनुपम रत्न हैं। जैन तत्त्वज्ञान एवं अध्यात्म की सरल शब्दों में सूक्ष्म तार्किक व्याख्या करके उन्होंने देश-विदेश में व्यापक धर्मप्रभावना की है। ..............वे अहर्निश समाज सेवा, धर्मप्रभावना एवं ज्ञान साधना में निमग्न मनीषी साधक के रूप में जैन समाज के विशिष्ट विद्वद्रत्न सिद्ध हुए हैं, उन्हें मेरा बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद है।" डॉ. भारिल्लजी द्वारा रचित समयसार का सार तथा प्रवचनसार का सार की भांति यह कृति 'छहढाला का सार' भी लोकप्रियता के पायदान पर अग्रसर रहेगी - ऐसी आशा है। - अखिल बंसल संयोजक : साहित्य प्रकाशन श्री अ. भा. दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् ट्रस्ट प्रकाशकीय 'छहढाला का सार' नामक इस कृति का प्रकाशन करते हुए हमें विशेष प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। छहढाला अपर नाम छोटा समयसार का अनेक कवियों ने मराठी भाषा में तथा कन्नड भाषा में भी काव्यमय अनुवाद किया है; पर सारस्वरूप विवेचन अबतक किसी ने नहीं किया है। ऐसे लोकप्रिय ग्रन्थ के सारस्वरूप यह कृति डॉ. भारिल्ल के समयसार का सार, प्रवचनसार का सार के समान ही स्वाध्यायप्रिय पाठकों के लिये एक अत्यावश्यक विषय प्राप्त हो रहा है। हमारा विचार इस छहढाला के सार को मराठी एवं कन्नड भाषा में अनुवादित करके प्रकाशित करने का है। इसीप्रकार मोक्षमार्गप्रकाशक का सार भी पाठकों के करकमलों में अतिशीघ्र देने का मानस है। छहढाला ग्रन्थ लोकप्रिय होने से अनेक माता-बहिने एवं बालकों को कण्ठस्थ है। इस कृति के कारण पाठशाला के विद्यार्थियों के लिये एवं पढ़ानेवाले अध्यापकों के लिये छहढाला का सार यह कृति अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। भविष्य में हमारा विचार इसप्रकार है कि डॉ. भारिल्ल जो बोलेंगे, उसे प्रकाशित करके साहित्यरूप में स्थायी बनाया जाये। वैसे डॉ. भारिल्ल के समयसार आदि अनेक ग्रंथों के तथा अन्य विशिष्ट विषय पर भी जो सेकड़ों प्रवचन हुये हैं, उनके कैसेट, सी. डी., वी. सी. डी. आदि उपलब्ध हैं, उनका समाज अत्यंत उत्साह से उपयोग कर रही है, इसका भी हमें आनंद है। जिनवाणी रसिक एवं धनवानों से मेरा निवेदन है कि उनके द्वारा ऐसे सामान्य जनोपयोगी साहित्य घर-घर पहुँचे - ऐसा प्रयास किया जाना धर्मप्रभावना के लिये उपयोगी सिद्ध होगा। अनेक उत्साही लोग ऐसा कार्य कर ही रहे हैं। इस कृति को भी दातार घर-घर पहुँचाने का मानस बनावे - यह हमारा सुझाव है। ___ डॉ. भारिल्ल की साहित्य-साधना अविरत चलती रहे - इसी भावना के साथ ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर
SR No.008345
Book TitleChahdhala Ka sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherDigambar Jain Vidwatparishad Trust
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size237 KB
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