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छहढाला का सार
दूसरा प्रवचन
मैंने कहा - जगत में जो पैसेवाले होते हैं, लोग उन्हें सुखी कहते हैं। जैनसमाज में आज सबसे ज्यादा सुखी आप ही दिखते हो। फिर भी हमें तो आप भी दुःखी ही दिखते हो; क्योंकि आप हमसे सुख की ही बात पूछ रहो हो। हमी से कह रहे हो कि संसार में सुख बताओ। अब बोलो आप दु:खी हो या नहीं ?
जो सुखी हैं, वे ही संसार में सुख का रास्ता पूछते फिर रहे हैं; इससे सिद्ध होता है कि संसार में सुख नहीं है । भगवान कहते हैं कि तेरे जो दुःख हैं; वे रोटी, कपड़ा और मकान की कमी के कारण नहीं हैं, सर्दी-गर्मी के कारण नहीं हैं; वे तो मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र के कारण हैं । इसलिए उन दुःखों से छूटने के लिए सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र धारण कर।
मिथ्यात्व दो प्रकार का होता है - एक गृहीत और एक अगृहीत । मिथ्याज्ञान भी दो प्रकार का होता है - एक गृहीत और एक अगृहीत । इसीप्रकार चारित्र भी दो प्रकार होता है - एक गृहीत और एक अगृहीत । ____ गृहीत अर्थात् हमने जो नया ग्रहण किया है। नरक में गृहीत मिथ्यात्व नहीं है, स्वर्ग में भी गृहीत मिथ्यात्व नहीं है और तिर्यंच गति में भी गृहीत मिथ्यात्व नहीं है। ये तो मनुष्यगति की नई कमाई है; क्योंकि दूसरे के उपदेश से हम असत्य बात स्वीकार कर लें, उसका नाम गृहीत मिथ्यात्व है। असैनी पंचेंद्रिय तक तो कोई दूसरे का उपदेश सुन ही नहीं सकता, समझ ही नहीं सकता; इसलिए असंज्ञी पंचेंद्रिय तक के जीवों को गृहीत मिथ्यात्व नहीं हो सकता।
निगोद में भी गृहीत मिथ्यादर्शन नहीं है। आठ वर्ष की उम्र तक यदि कोई सम्यग्दृष्टि नहीं हो सकता है तो गृहीत मिथ्यादृष्टि भी नहीं हो सकता । हमने होशो-हवास में तत्त्व के सम्बन्ध में जो नई असत्य बात सीखी है, उसका नाम है गृहीत मिथ्यात्व।
अगृहीत अर्थात् जिसे हमने कभी ग्रहण नहीं किया है। अनादिकाल से, जबसे हम निगोद में हैं, तब से ही यह हमारे साथ है। ___ एक आदमी को कैन्सर है और जुखाम भी हो गया, मच्छरों ने काटा तो बुखार हो गया, मलेरिया हो गया। उसको बड़ी बीमारी कौनसी है, उसे किसकी चिन्ता करना चाहिये - जुखाम की या कैंसर की ?
समझदार डॉक्टर कहता है कि इस सर्दी-जुखाम में क्या दम है, इसके लिए मैं कोई दवाई भी नहीं दूंगा, दो-तीन दिन में अपने आप ठीक हो जावोगे, यह मेरी चिंता का विषय नहीं है। मेरी चिन्ता का विषय तो तेरा कैन्सर है। ___आचार्य कहते हैं कि दूसरों से खोटी बात ग्रहण कर ली है तो कोई चिन्ता की बात नहीं; क्योंकि तू समझदार है न ! कोई सच्चा गुरु समझायेगा तो तू सच्ची बात भी ग्रहण कर लेगा। यह कोई बड़ी समस्या नहीं है; बड़ी समस्या तो अनादि से देह में एकत्वबुद्धि, ममत्वबुद्धि, कर्तृत्वबुद्धि, भोक्त्वृत्वबुद्धि है। मैं परपदार्थ का कर्ता हूँ, भोक्ता हूँ, परपदार्थ का स्वामी हूँ, परपदार्थ मेरा स्वामी है - इसका नाम है अगृहीत मिथ्यात्व और यह सबसे बड़ी समस्या है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि तू है तो दु:खी और अपने को मान रहा है सुखी - यह बड़ी बीमारी है। पुण्य-पाप यह बात व्याधि सम क्षण में हँसत क्षणक रोवत है।
पुण्य-पाप तो वायु की बीमारी जैसे हैं; इनके वश जीव क्षण में हँसने लगता है और क्षण में रोने लगता है।
वात की व्याधि होती है, वायु का रोग होता है तो आदमी आधे पागल जैसा हो जाता है; समझो पागल ही हो जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार पित्त की बीमारियाँ बीस तरह की होती हैं। फेफड़ों में खाँसी आदि कफ की बीमारियाँ चालीस तरह की होती हैं।
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