SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छहढाला का सार दूसरा प्रवचन अस्सी तरह की वायु की बीमारियाँ हैं, जिसमें हड्डी की बीमारियाँ, नसों की बीमारियाँ, हार्ट-अटैक और पागलपन आदि सभी आ जाते हैं। बात की बीमारी से पीड़ित अर्द्धविक्षिप्त आदमी एक क्षण में रोने लगता है और रोते-रोते एकदम हँसने लगता है और हँसते-हँसते, बात करतेकरते एकदम रोने लगता है। जिसप्रकार वातव्याधि पीड़ित व्यक्ति क्षण में हँसने लगता है और क्षण में रोने लगता है; उसीप्रकार ये पुण्य-पाप भी वात की व्याधि के समान हैं; क्योंकि पुण्य के उदय में अपने को सुखी अनुभव करना और पाप के उदय में दु:खी अनुभव करना - यह आध्यात्मिक वात की बीमारी है, आध्यात्मिक पागलपन है। पागल का हँसना और रोना - दोनों ही बीमारी के लक्षण हैं, स्वास्थ्य के नहीं। यह पुण्य के उदय में हँसता है और पाप के उदय में रोता है। इसे तो मिथ्यात्व नामक वायु की बीमारी हो गई है। __ पुण्य के उदय से अनुकूल संयोग मिले तो उसमें खुश होने की जरूरत नहीं; पाप के उदय से प्रतिकूल संयोग मिले तो उसमें दुःखी होने की जरूरत नहीं। आचार्य कहते हैं कि यह अनुकूल संयोगों में खुश हो जाता है और प्रतिकूल संयोगों में घबराने लगता है - यह इसकी बीमारी है। यह मिथ्यात्व नाम की वायु की बीमारी है। ___ जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष - इन सात तत्त्वों के विषय में जो अनादिकालीन विपरीत मान्यता है, वह अगृहीत मिथ्यात्व की बीमारी है। हम जीव है, ज्ञान हमारा गुण है, जानना हमारा कार्य है। यह पुद्गल अजीव है, टेबल अजीव है, घड़ी अजीव है - इसमें तो कोई शंका नहीं होती और सिद्ध भगवान जीव हैं, जानने-देखनेवाले जीव हैं - इसमें भी किसी को शंका नहीं होती है; लेकिन अनन्त पुद्गल परमाणुओं का पिण्ड शरीर और उसमें एक आत्मा - इन दोनों की मिली हुई अवस्था का नाम हाथी है। अब बोलो - यह हाथी जीव है या अजीव ? अरे भाई ! यह हाथी एक लिमिटेड कम्पनी है, जिसके अनन्त शेयर हैं पुद्गल के और एक शेयर है आत्मा का। अब बोलो हाथी जीव है या अजीव ? इस बात को निम्नांकित उदाहरण से भलीभाँति समझा जा सकता है - 'आपकी आजीविका क्या है ?' किसी के यह पूछने पर हमने कहा कि ये जो मारुती का कारखाना है, वह अपना ही तो है। तब वह बोला - गजब हो गया ! हमें तो मालूम ही नहीं था कि यह इतना बड़ा कारखाना आपका है। अच्छा, तुम्हें पता नहीं था? मैं तुमसे ही पूछता हूँ कि इसका मालिक कौन है ? जो शेयरधारक हैं, वे ही उसके मालिक हैं न ? मेरे पास भी उसका एक शेयर है। जिसके करोड़ों शेयर हैं, मैं उस मारुती लिमिटेड का एक शेयर लेकर अपने आपको मारुती लिमिटेड का मालिक समयूं तो यह पागलपन नहीं है क्या ? जिसके तुम मालिक बने फिरते हो, यदि उस मारुती कारखाने के गेट पर तुम जाओगे तो चपरासी तुम्हें अंदर घुसने नहीं देगा। उसके व्यवस्थापकों से मिलने के लिए तुम्हें छह महिने पहिले से ही अर्जी लगानी पड़ेगी। जब तुम वहाँ जाकर अपना शेयर दिखाओगे तो वह चपराशी कहेगा शेयर मार्केट में जाओ। वहाँ दस-पाँच रुपये में बिक जाये तो बेच देना । ये दिखाकर तुम इसमें नहीं घुस सकते हो; क्योंकि जबतक उन शेयरों का बहुमत तुम्हारे पास नहीं हो, तबतक तुम उसके मालिक नहीं हो सकते। इतना तो आप जानते ही हैं न ? (16)
SR No.008345
Book TitleChahdhala Ka sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherDigambar Jain Vidwatparishad Trust
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size237 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy