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________________ छहढाला का सार पहला प्रवचन देखो, ऐसे चक्रवर्ती को यहाँ दु:खी कह रहे हैं? सारी विभूति मौजूद है, छह खंडों का मालिक है, छियान्नवे हजार पत्नियों का पति है; फिर भी दु:खी। यदि वे दुःखी नहीं हैं तो इन पाँच इन्द्रियों के विषयों में क्यों रमे हैं ? लिखा है - सुरपति, असुरपति, नरपती इन्द्रियविषय दवदाह से पीड़ित रहें। उन्हें पाँच इन्द्रियों के विषयों को भोगने की आकांक्षा है, उससे वे इतने पीड़ित हैं कि इन गंदे विषय-भोगों में चौबीसों घंटे लिप्त रहते हैं। भगवान की दिव्यध्वनि छोड़कर भरत चक्रवर्ती लड़ाई लड़ने निकल गये, ९६००० शादियाँ करने निकल गये। यदि वे दुःखी नहीं हैं तो फिर यह सब क्यों, किसलिये ? ___ कोई कहे - मैं कभी बीमार नहीं पड़ता; क्योंकि मेरे पास दवाइयों के दो बक्से और दो डॉक्टर हमेशा साथ चलते हैं। अरे भाई ! ये दवाइयों के बक्से और डॉक्टरों का साथ चलना बीमार नहीं पड़ने की निशानी है अथवा सदा बीमार रहने की निशानी है ? इसीप्रकार यह भोग सामग्री उनके सुखी होने की निशानी है या दुःखी होने के निशानी है? आयुर्वेद में कहा गया है कि बकरे की पेशाब कान में डालो तो कान का दर्द ठीक हो जाता है। जब किसी के कान में दर्द नहीं हो, तब कोई उस कटोरे को छूने को भी तैयार नहीं होता; जिसमें यह पेशाब रखी हो । जब किसी के कान में भयंकर दर्द हुआ तो कहा गया कि यह बकरे की पेशाब है और कान में डालेंगे तो दर्द ठीक हो जायेगा; लेकिन यह समझ लो कि कान में डालोगे तो अकेले कान में ही नहीं रहेगी, गले में भी पहुँच जायेगी, मुँह में पहुँच जायेगी; क्योंकि अन्दर सब एक है, बाहर भले ही अलग-अलग दिखता हो। बोलो - डाले कि नहीं डाले ? वह कहेगा - देर क्यों करते हो ? जल्दी डाल दो न ! तात्पर्य यह है कि उसे भयंकर पीड़ा है, अन्यथा वह ऐसा अपवित्र पदार्थ कान में क्यों डलवाता ? इसीप्रकार इन्द्र और चक्रवर्ती भी दु:खी हैं, अन्यथा वे भोगों में लिप्त क्यों रहते ? यह भोगों की लिप्तता उनके दुःखी होने की निशानी है। आचार्यदेव ने प्रवचनसार की टीका में उक्त उदाहरण स्वयं दिया है। उन्होंने तो पाँचों इन्द्रियों सम्बन्धी इसीप्रकार के पाँच उदाहरण दिये हैं। ___खाने का मजा तो तब है, जब डटकर भूख लगी हो; रूखी-सूखी रोटी में भी तभी मजा आता है। यदि भूख नहीं लगी हो तो बढ़िया से बढ़िया माल-मसाले भी अच्छे नहीं लगते। भोजन का आनन्द लेने के लिए भूख लगना जरूरी है। संयोग का आनन्द लेना है तो वियोग होना जरूरी है। वियोग के बिना संयोग का आनन्द नहीं आयेगा। ____ अब प्रश्न है कि डटकर भूख लगना सुख है या दुःख ? खायेंगे तब तो सुखी हो जायेंगे; लेकिन जबतक नहीं खायेंगे, तबतक सुख हुआ या दुःख ? यदि भूख का नाम दु:ख कहे तो जब थोड़ी लगे तो थोड़ा दुःख और अधिक लगे तो अधिक दुःख । इसप्रकार आठ घंटे दुःखी रहे और पाँच मिनिट सुखी हुये । खाने के बाद तो हम चूरन तलाशते फिरते हैं। यदि कोई कहे कि खाते वक्त तो सुख हुआ। उससे कहते हैं कि खाते वक्त भी एक कौर मीठे का खाते हैं, फिर तत्काल अगला ही कौर नमकीन का खाते हैं - ऐसा क्यों ? नमकीन क्यों ? यदि मीठे में सुख है तो मीठा ही खाओ न। नहीं, नमकीन खाकर जरा मुँह ठीक कर लूँ। इसका मतलब तो यह हुआ कि मीठा खाने से मुँह खराब हो गया। वह सुख हुआ अथवा दुःख ? यदि नमकीन खाने से मुँह ठीक होता है तो फिर नमकीन ही नमकीन खाओ न ? फिर नमकीन, फिर मीठा - इसप्रकार बदलबदलकर जमकर खा-पी लिया और फिर कहता है कि अब सौंफ (8)
SR No.008345
Book TitleChahdhala Ka sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherDigambar Jain Vidwatparishad Trust
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size237 KB
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