________________
छहढाला का सार
पहला प्रवचन
सुपारी लाओ। यह किसलिए? जरा मुँह ठीक हो जाये। जिस वस्तु के खाने के बाद मुँह ठीक करना पड़े; उसमें सुख कैसे हो सकता है ? ___ खाते वक्त भी कितना सुख हुआ है - यह भी समझ लो। पसीना छूट रहा है - यह सुख की निशानी है या दुःख की है? पसीने को शास्त्रों श्रमजल कहा है।
चारों गतियों में दुःख ही दुःख हैं, कहीं भी सुख नहीं है। नरक में सर्दी-गर्मी और भूख-प्यास के दु:ख, तिर्यंच गति में मारने-पीटने के दुःख, मनुष्य गति बालपन और बुढ़ापे के दुःख और देवगति में भी सम्यग्दर्शन के बिना दु:ख ही दुःख हैं।
अरे भाई ! भूख-प्यास के दुःख भोजन और पानी की कमी के कारण नहीं हैं, अपितु सम्यग्दर्शन नहीं होने के कारण हैं।
देखो ! मुनिराज जंगल में बैठे हैं, किसी व्यक्ति को आठ दिन से भोजन नहीं मिला और वह भूख से तड़प रहा है; पानी भी नहीं मिला, अत: प्यास से तड़प रहा है। वह महाराज के पास गया और बोला मुझे भूख लगी है, प्यास लगी है। मुनिराज कहें - देख भाई! तू दुःखी भोजन की कमी से नहीं, पानी की कमी से नहीं, सम्यग्दर्शन की कमी से है। ___ यह सुनकर उसे गुस्सा आयेगा; वह कहेगा मैं तो तुम्हारे पास पानी मांगने आया था, जो तुम्हारे कमंडलु में है और तुम मुझे उपदेश दे रहे हो।
ऐसा क्यों होता है ? आपके हिसाब से ऐसी स्थिति में मुनियों को क्या करना चाहिए?
जो कमंडलु कभी मँजता नहीं है, जो शुद्धि के काम आता है; क्या तुम उस कमंडलु के पानी को पी सकते हो ? नहीं तो फिर वह पानी उसे कैसे पिलाया जा सकता है ? |
आप कह सकते हैं कि वह प्यास से मरा जा रहा है, आपको जल शुद्ध-अशुद्ध दिख रहा है। जान बचाने की कीमत पर तो कुछ भी
खाया-पिया जा सकता है।
अरे भाई ! मुनिराजों ने दिन और रात चितवन करके यह तत्त्व निकाला है कि जीव मिथ्यादर्शन के कारण दु:खी है, मिथ्याज्ञान के कारण दु:खी है, मिथ्याचारित्र के कारण दु:खी है और इनको मेटे बिना, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र को धारण किये बिना सुखी नहीं हो सकता, जन्म-मरण का अन्त नहीं हो सकता। इस बात का उनको पक्का श्रद्धान है। इसलिए वे इसी बात का उपदेश देते हैं।
देखो ! पागल कुत्ता काटे तो बहुत जोर की प्यास लगती है; लेकिन यदि एक घुट पानी पिला दो तो उसकी तकलीफ सौ गुना बढ़ जाती है। उसे जो प्यास लगी, उसका इलाज क्या पानी पिलाना है ?
यदि वह चिल्लायेगा - पानी, पानी, पानी तो डॉक्टर उसे पानी देगा या दवाई ? डॉक्टर जानता है कि इसकी तकलीफ दवाई से मिटेगी, पानी से नहीं। इसीप्रकार मुनिराज जानते हैं कि यह मिथ्यादर्शन-ज्ञानचारित्र से दु:खी है और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र से सुखी हो सकता है। इसलिए वे उसे सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का उपदेश देते हैं।
हमने यह मान रखा है कि कपड़े नहीं मिले, इसलिए दुःख है, रोटी नहीं मिली, इसलिए दुःख है। रोटी, कपड़ा और मकान - इन तीन चीजों की कमी से हम दुःखी हैं और इन तीन चीजों का इंतजाम हो जाये तो हम सुखी हो जायेंगे । नेता लोग भी यही आश्वासन देते हैं कि हम रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था करेंगे; जिससे तुम सुखी हो जाओगे।
परन्तु आजतक तो कोई इनकी प्राप्ति से सुखी हुआ नहीं।
तब वह कहता है - इसका पता तो तब चलेगा, जब हमारे पास रोटी, कपड़ा और मकान हो जायेगा।
अरे भाई ! यदि इस भव में यह सब नहीं हो पाया तो यह भव मुफ्त में ही चला जायेगा।
(9)