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विषय
भावशुद्धि में ज्ञानाभ्यास का उपदेश भावशुद्धि के निमित्त ब्रह्मचर्य के अभ्यास
का कथन
भावसहित चार आराधना को प्राप्त करता है, भावरहित संसार में भ्रमण करता है
भाव तथा द्रव्य के फल का विशेष अशुद्ध भाव से ही दोषरहित आहार किया,
फिर उसी से दुर्गति के दुःख सहे
सचित्त त्याग का उपदेश
पंचप्रकार विनय पालन का उपदेश
वैयावृत्त्य का उपदेश
लगे हुए दोषों को गुरु के सन्मुख प्रकाशित करने
का उपदेश
क्षमा का उपदेश
क्षमा का फल
क्षमा के द्वारा पूर्वसंचित क्रोध के नाश का उपदेश दीक्षाकाल आदि की भावना का उपदेश भावशुद्धिपूर्वक ही चार प्रकार का बाह्यलिंग कार्यकारी है
भाव बिना आहारादि चार संज्ञा के परवश होकर अनादिकाल संसार भ्रमण होता है
भावशुद्धिपूर्वक बाह्य उत्तरगुणों की प्रवृत्ति का उपदेश
तत्त्व की भावना का उपदेश
तत्त्वभावना बिना मोक्ष नहीं
पापपुण्यरूपबंध तथा मोक्ष का कारण भाव
ही है
पापबंध के कारणों का कथन
पुण्यबंध के कारणों का कथन
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भावना सामान्य का कथन
उत्तरभेदसहित शीलव्रत भाने का उपदेश
१८९ टीकाकार द्वारा वर्णित शील के अठारह हजार भेद तथा चौरासी लाख उत्तर गुणों का वर्णन, गुणस्थानों की परिपाटी धर्मध्यान शुक्लध्यान के धारण तथा
आर्तरौद्र के त्याग का उपदेश
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भवनाशक ध्यान भावश्रमण के ही है ध्यानस्थिति में दृष्टान्त
पंचगुरु के ध्यावने का उपदेश
ज्ञानपूर्वक भावना मोक्ष का कारण है
भावलिंगी के संसार परिभ्रमण का अभाव
होता है
भाव धारण करने का उपदेश तथा भावलिंगी
उत्तमोत्तम पद तथा उत्तमोत्तम सुख को प्राप्त करता है
भावश्रमण को नमस्कार
देवादि ऋद्धि भी भावभ्रमण को मोहित
नहीं करती तो फिर अन्य संसार के सुख क्या मोहित कर सकते हैं
जबतक जरारोगादि का आक्रमण न हो तबतक आत्मकल्याण करो
अहिंसा धर्म का उपदेश
चार प्रकार के मिध्यात्वियों के भेदों का वर्णन अभव्य विषयक कथन
मिथ्यात्व दुर्गति का निमित्त है
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तीन सौ त्रेसठ प्रकार के पाखंडियों के मत २०२ को छुड़ाने का और जिनमत में प्रवृत्त
२०३ | करने का उपदेश है
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