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विषय
पृष्ठ | विषय सम्यग्दर्शन बिना जीव चलते हुए मुरदे
शुद्धभावनिमित्त आचार्यकृत सिद्धपरमेष्ठी के समान है, अपूज्य है
की प्रार्थना सम्यक्त्व की उत्कृष्टता
चार पुरुषार्थ तथा अन्य व्यापार सर्व भाव में सम्यग्दर्शनसहित लिंग की प्रशंसा
ही परिस्थित हैं, ऐसा संक्षिप्त वर्णन दर्शनरत्न के धारण करने का आदेश २२२
भाव प्राभृत के पढ़ने-सुनने-मनन करने से मोक्ष असाधारण धर्मों द्वारा जीव का विशेष वर्णन २२३
की प्राप्ति होती है ऐसा उपदेश तथा पण्डित जिनभावना-परिणत जीव घातिकर्म का
जयचंद्रजी कृत ग्रन्थ का देशभाषा में सार नाश करता है
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६. मोक्षपाहुड घातिकर्म का नाश अनंत-चतुष्टय का कारण है २२५ मंगलनिमित्त देव को नमस्कार कर्मरहित आत्मा ही परमात्मा है, उसके कुछेक देव नमस्कृति पूर्वक मोक्षपाहुड लिखने नाम
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की प्रतिज्ञा देव से उत्तम बोधि की प्रार्थना
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परमात्मा के ज्ञाता योगी को मोक्ष प्राप्ति जो भक्तिभाव से अरहंत को नमस्कार करते हैं
आत्मा के तीन भेद वे शीघ्र ही संसार बेलि का नाश करते हैं
आत्मत्रय का स्वरूप जलस्थित कमलपत्र के समान सम्यग्दृष्टि
परमात्मा का विशेष स्वरूप विषयकषायों से अलिप्त है
बहिरात्मा को छोड़कर परमात्मा को
ध्याने का उपदेश भावलिंग विशिष्ट द्रव्यलिंगी मुनि कोरा द्रव्यलिंगी
बहिरात्मा का विशेष कथन है और श्रावक से भी नीचा है
मोक्ष की प्राप्ति किसके है धीर वीर कौन?
बंधमोक्ष के कारण का कथन धन्य कौन ?
कैसा हुआ मुनि कर्म का नाश करता है मुनिमहिमा का वर्णन
कैसा हुआ कर्म का बंध करता है मुनि सामर्थ्य का वर्णन
सुगति और दुर्गति के कारण मूलोत्तर-गुण-सहित मुनि जिनमत आकाश
परद्रव्य का कथन में तारागण सहित पूर्ण चंद्रसमान है
स्वद्रव्य का कथन विशुद्धभाव के धारक ही तीर्थंकर चक्री
निर्वाण की प्राप्ति किस द्रव्य के ध्यान से आदि के पद तथा सुख प्राप्त करते हैं
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होती है विशुद्ध भाव धारक ही मोक्ष सुख को
जो मोक्ष प्राप्त कर सकता है उसे स्वर्ग प्राप्त होते हैं
२३३ | प्राप्ति सुलभ है
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पत्रसमानह
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