________________
विषय
भावशुद्धि बिना विद्वत्ता भी कार्यकारी नहीं उसमें उदाहरण अभव्यसेन मुनि
विद्वत्ता बिना भी भावशुद्धि कार्यकारिणी है उसका दृष्टान्त शिवभूति तथा शिवभूति की कथा
नझत्व की सार्थकता भाव से ही है
भाव के बिना कोरा नम्रत्व कार्यकारी नहीं
भावलिंग का लक्षण
भावलिंगी के परिणामों का वर्णन
मोक्ष की इच्छा में भावशुद्ध आत्मा का चितवन
आत्मचितवन भी निजभाव सहित कार्यकारी है
सर्वज्ञ प्रतिपादित जीव का स्वरूप जिसने जीव का अस्तित्व अंगीकार किया
है उसी के सिद्धि है
जीव का स्वरूप वचनगम्य न होने पर भी अनुभवगम्य है
पंचप्रकार ज्ञान भी भावना का फल है।
भाव बिना पठन श्रवण कार्यकारी नहीं
बाह्य नपने से ही सिद्धि हो, तो तिच
आदि सभी नग्न हैं
भाव बिना केवल नापना निष्फल ही है पापमलिन कोरा नग्न मुनि अपयश का ही पात्र है
भावलिंगी होने का उपदेश
भावरहित कोरा नम्रमुनि निर्गुण निष्फल जिनोक्त समाधि बोधि द्रव्यलिंगी के नहीं भावलिंग धारणकर द्रव्यलिंग धारण करना ही मार्ग है
शुद्ध भाव मोक्ष का कारण अशुद्ध भाव संसार का कारण
पृष्ठ
१६२
१६३
१६३
१६४
१६५
१६५
१६६
१६६
१६६
१६६
१६६
१६८
१६९
१७०
१७१
१७१
१७२
१७२
१७३
१७४
१७४
१७५
१७५
विषय
भाव के फल का माहात्म्य
भावों के भेद और उनके लक्षण
जिनशासन का माहात्म्य
दर्शनविशुद्धि आदि भावशुद्धि तीर्थंकर
प्रकृति की भी कारण है
विशुद्धि निमित्त आचरण का उपदेश
जिनलिंग का स्वरूप
जिनधर्म की महिमा
प्रवृत्ति निवृत्तिरूप धर्म का कथन पुण्यधर्म
नहीं है, धर्म क्या है ?
पुण्य प्रधानताकर भोग का निमित्त है, कर्मक्षय का नहीं
मोक्ष का कारण आत्मीक स्वभावरूप धर्म ही है
आत्मीक शुद्ध परिणति के बिना अन्य समस्त पुण्य परिणति सिद्धि से रहित हैं।
आत्मस्वरूप का श्रद्धान तथा ज्ञान मोक्ष का साधक है ऐसा उपदेश
बाह्य हिंसादि क्रिया बिना सिर्फ अशुद्ध भाव भी सप्तम नरक का कारण है उसमें उदाहरणतंदुल मत्स्य की कथा
भावबिना बाह्य परिग्रह का त्याग निष्फल है भावशुद्धिनिमित्तक उपदेश
भावशुद्धि का फल
भावशुद्धि के निमित्त परीषों के जीतने का
उपदेश
परीषह विजेता उपसर्गों से विचलित नहीं होता उसमें दृष्टान्त
भावशुद्धि निमित्त भावनाओं का उपदेश
( ३० )
पृष्ठ
१७६
१७६
१७७
१७८
१७८
१७९
१८०
१८१
१८२
१८२
१८३
१८३
१८४
१८५
१८५
१८७
१८७
१८८
१८९