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विषय नरकगति के दुःखों का वर्णन तिर्यंचगति के दुःखों का वर्णन मनुष्यगति के दुःखों का वर्णन देवगति के दु:खों का वर्णन द्रव्यलिंगी कंदी आदि पाँच अशुभभावना के निमित्त से नीच देव होता है। कुभावनारूप भाव कारणों से अनेकबार अनंतकाल पार्श्वस्थ भावना भाकर दुःखी हुआ हीन देव होकर महर्द्धिक देवों की विभूति देखकर मानसिक दुःख हुआ मदमत्त अशुभभावनायुक्त अनेक बार कुदेव हुआ गर्भजन्य दु:खों का वर्णन जन्म धारण कर अनंतानंत बार इतनी माताओं का दूध पीया कि जिसकी तुलना समुद्रजल से भी अधिक है अनंत बार मरण से माताओं के अश्रुओं की तुलना समुद्र के जल से अधिक है अनंत जन्म के नख तथा केशों की राशि भी मेरु से अधिक है जल थल आदि अनेक तीन भुवन के स्थानों में बहुत बार निवास किया जगत के समस्त पुद्गलों को अनन्तबार भोगा तो भी तृप्ति नहीं हुई तीन भुवन संबंधी समस्त जल पिया तो भी प्यास शांत न हुई अनंत भवसागर में अनेक शरीर धारण किये जिनका कि प्रमाण भी नहीं विषादि द्वारा मरण कर अनेक बार अपमृत्युजन्य तीव्र दुःख पाये
पृष्ठ | विषय १३५ | निगोद के दुःखों का वर्णन १३६ क्षुद्र भवों का कथन
रत्नत्रय धारण करने का उपदेश रत्नत्रय का सामान्य लक्षण जन्म मरण नाशक सुमरण का उपदेश
१४७ टीकाकार वर्णित १७ सुमरणों के भेद १३८ तथा सर्व के लक्षण
१४७ द्रव्य श्रमण का त्रिलोक में ऐसा कोई भी १३८ परमाणु मात्र क्षेत्र नहीं जहाँ कि जन्म मरण
को प्राप्त नहीं हुआ। भावलिंग के बिना बाह्य जिनलिंग प्राप्ति में भी अनंत काल दुःख सहे १५० पुद्गल की प्रधानता से भ्रमण
१५१ १३९ क्षेत्र की प्रधानता से भ्रमण और शरीर के
रोग प्रमाण की अपेक्षा से दुःख का वर्णन १५२ अपवित्र गर्भ-निवास की अपेक्षा दुःख का वर्णन १५३ बाल्य अवस्था संबंधी वर्णन
१५४ शरीरसंबंधी अशुचित्व का विचार
१५५ कुटुम्ब से छूटना वास्तविक छूटना नहीं, किन्तु भाव से छूटना ही वास्तविक छूटना है १५५ मुनि बाहुबलीजी के समान भावशुद्धि के बिना बहुत कालपर्यन्त सिद्धि नहीं हुई मुनि पिंगल का उदाहरण तथा टीकाकार वर्णित कथा
१५६ वशिष्ठ मुनि का उदाहरण और कथा
१५७ भाव के बिना चौरासी योनियों में भ्रमण १५७ भाव से ही लिंगी होता है, द्रव्य से नहीं बाहु मुनि का दृष्टान्त और कथा द्वीपायन मुनि का उदाहरण और कथा १६१
भावशुद्धि की सिद्धि में शिवकुमार मुनि का १४४ | दृष्टान्त तथा कथा
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