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अष्टपाहुड
पाँचवाँ व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग है, इसमें जीव के अस्ति नास्ति आदिक साठ हजार प्रश्न गणधरदेवों ने तीर्थंकर के निकट किये उनका वर्णन है, इसके पद दो लाख अठाईस हजार हैं।
छठा ज्ञातृधर्मकथा नाम का अंग है, इसमें तीर्थंकरों के धर्म की कथा जीवादिक पदार्थों के स्वभाव का वर्णन तथा गणधर के प्रश्नों का उत्तर का वर्णन है, इसके पद पाँच लाख छप्पन हजार हैं।
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सातवाँ उपासकाध्ययन नाम का अङ्ग है, इसमें ग्यारह प्रतिमा आदि श्रावक के आचार का वर्णन है, इसके पद ग्यारह लाख सत्तर हजार हैं 1
आठवाँ अन्तःकृतदशांग नाम का अंग है, इसमें एक-एक तीर्थंकर के काल में दस दस अन्तःकृत केवली हुए उनका वर्णन है, इसके पद तेईस लाख अठाईस हजार हैं ।
नौवां अनुत्तरोपपादक नाम का अंग है, इसमें एक-एक तीर्थंकर के काल में दस-दस महामुनि घोर उपसर्ग सहकर अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए उनका वर्णन है, इसके पद ब चवालीस हजार हैं।
दसवां प्रश्न व्याकरण नाम का अंग है, इसमें अतीत अनागत काल संबंधी शुभाशुभ का प्रश्न कोई करे उसका उत्तर यथार्थ कहने के उपाय का वर्णन है तथा आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी, निर्वेदनी - इन चार कथाओं का भी इस अंग में वर्णन है, इसके पद तिराणवें लाख सोलह हजार हैं।
ग्यारहवाँ विपाकसूत्र नाम का अंग है, इसमें कर्म के उदय का तीव्र, मंद अनुभाग का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा लिए हुए वर्णन है, इसके पद एक करोड़ चौरासी लाख हैं । इसप्रकार ग्यारह अंग हैं, इनके पदों की संख्या को जोड़ देने पर चार करोड़ पंद्रह लाख दो हजार पद होते हैं।
बारहवाँ दृष्टिवाद नाम का अंग है, इसमें मिथ्यादर्शन संबंधी तीन सौ तरेसठ कुवादों का वर्णन है, इसके पद एक सौ आठ करोड़ अड़सठ लाख छप्पन हजार पाँच हैं। इस बारहवें अंग के पाँच अधिकार हैं - १. परिकर्म, २. सूत्र, ३. प्रथमानुयोग, ४. पूर्वगत, ५. चूलिका । परिकर्म में गणित के करण सूत्र हैं; इनके पाँच भेद हैं- प्रथम चन्द्रप्रज्ञप्ति है, इसमें चन्द्रमा के गमनादिक परिवार वृद्धि, हानि, ग्रह आदि का वर्णन है, इसके पद छत्तीस लाख पाँच हजार है। दूसरा सूर्यप्रज्ञप्ति है, इसमें सूर्य की ऋद्धि, परिवार, गमन आदि का वर्णन है, इसके पद पाँच लाख तीन हजार हैं। तीसरा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति है, इसमें जम्बूद्वीप संबंधी मेरु गिरि क्षेत्र कुलाचल आदि का वर्णन है, इसके पद तीन लाख पच्चीस हजार हैं। चौथा द्वीप सागर प्रज्ञप्ति है, इसमें द्वीपसागर का स्वरूप तथा वहाँ स्थित ज्योतिषी, व्यन्तर भवनवासी देवों के आवास तथा वहाँ स्थित जिनमन्दिरों का वर्णन है, इसके पद बावन लाख छत्तीस हजार हैं। पाँचवाँ व्याख्याप्रज्ञप्ति है, इसमें जीव अजीव पदार्थों के प्रमाण का वर्णन है, इसके पद चौरासी लाख छत्तीस हजार हैं। इसप्रकार परिकर्म के पाँच भेदों के पद जोड़ने पर एक करोड़ इक्यासी लाख पाँच हजार होते हैं 1