________________
भावपाहुड
१४९ अन्य बालपना होते हुए भी दर्शन पंडितता के सद्भाव से पंडित मरण में ही गिनते हैं। दर्शनज्ञान का मरण संक्षेप से दो प्रकार का कहा है - इच्छाप्रवृत्त और अनिच्छाप्रवृत्त । अग्नि से, धूम से, शस्त्र से, विष से, जल से, पर्वत के किनारे पर से गिरने से, अति शीत ऊष्ण की बाधा से, बंधन से, क्षुधा तृषा के रोकने से, जीभ उखाड़ने से और विरुद्ध आहार करने से बाल (अज्ञानी) इच्छापूर्वक मरे सो ‘इच्छाप्रवृत्त' है तथा जीने का इच्छुक हो और मर जावे सो अनिच्छाप्रवृत्त' है ।।५।। ___पंडितमरण चार प्रकार का है - १. व्यवहारपंडित, २. सम्यक्त्वपंडित, ३. ज्ञानपंडित, ४. चारित्रपंडित । लोकशास्त्र के व्यवहार में प्रवीण हो वह व्यवहारपंडित' है। सम्यक्त्व सहित हो सम्यक्त्वपंडित' है। सम्यग्ज्ञान सहित हो 'ज्ञानपंडित' है। सम्यक्चारित्रसहित हो ‘चारित्रपंडित' है। यहाँ दर्शन-ज्ञान-चारित्र सहित पंडित का ग्रहण है, क्योंकि व्यवहारपंडित मिथ्यादृष्टि बालमरण में आ गया ।।६।।
मोक्षमार्ग में प्रवर्तनेवाला साधु संघ से छूटा उसको ‘आसन्न' कहते हैं। इसमें पार्श्वस्थ, स्वच्छन्द, कुशील, संसक्त भी लेने, इसप्रकार के पंचप्रकार भ्रष्ट साधुओं का मरण 'आसन्नमरण' है।।७।।
सम्यग्दृष्टि श्रावक का मरण ‘बालपंडितमरण' है ।।८।। सशल्यमरण दो प्रकार का है - मिथ्यादर्शन, माया, निदान ये तीन शल्य तो ‘भावशल्य' हैं और पंच स्थावर तथा त्रस में असैनी ये 'द्रव्यशल्य' सहित हैं, इसप्रकार ‘सशल्यमरण' है ।।९।।
जो प्रशस्तक्रिया में आलसी हो, व्रतादिक में शक्ति को छिपावे, ध्यानादिक से दूर भागे इसप्रकार का मरण पलायमरण' है ।।१०।।
वशार्त्तमरण चार प्रकार का है - वह आर्तरौद्र ध्यानसहित मरण है, पाँच इन्द्रियों के विषयों में रागद्वेष सहित मरण 'इन्द्रियवशार्त्तमरण' है । साता असाता की वेदनासहित मरे 'वेदनावशार्त्तमरण' है। क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय के वश से मरे 'कषायवशार्त्तमरण' है। हास्य विनोद कषाय के वश से मरे 'नोकषायवशार्त्तमरण' है।।११।।
जो अपने व्रत क्रिया चारित्र में उपसर्ग आवे वह सहा भी न जावे और भ्रष्ट होने का भय आवे तब अशक्त होकर अन्नपानी का त्यागकर मरे 'विप्राणसमरण' है।।१२।।
शस्त्र ग्रहण कर मरण हो गृधपृष्ठमरण' है।।१३।। अनुक्रम से अन्नपानी का यथाविधि त्याग कर मरे 'भक्तप्रत्याख्यानमरण' है ।।१४।। संन्यास करे और अन्य से वैयावृत्त्य करावे 'इंगिनीमरण' है ।।१५।।