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________________ १८ अहिंसा : महावीर की दृष्टि में भगवान महावीर का संदेश देते फिर रहे थे । उत्तर-दक्षिण - पूर्व-पश्चिम सभी तीर्थों की तीन मास तक यात्रा करते हुए अन्त में गुजरात पहुँचे । वहाँ की एक सभा में भगवान महावीर के इसी अहिंसा सन्देश को हम जनता जर्नादन तक पहुँचा रहे थे कि अध्यक्ष पद पर विराजमान महानुभाव बोले - "यह तो ठीक, पर आप तो यह बताइये कि यह हिंसा रुके कैसे?" हमने कहा – “हाँ, बताते हैं; यह भी बताते हैं । सुनिये तो सही ! इस गुजरात प्रान्त में शराबबन्दी लागू है, फिर भी लोग शराब तो पीते ही हैं। अब आप ही बताइये कि यह शराबबन्दी सफल कैसे हो?" हमने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि - "एक उपाय तो यह है कि बाजार में कोई व्यक्ति शराब पीकर डोलता हो तो उसे पुलिसवाले पकड़ लें, दो-चार चाँटे मारें, जेब में दश-बीस रुपये हों, उन्हें छीनकर छुट्टी कर दें; तो क्या शराबबन्दी सफल हो जावेगी?" "नहीं, कदापि नहीं। " "तो क्या करना होगा?" "जबतक उन होटलों पर छापा नहीं मारा जायेगा, जिन होटलों में यह अवैध शराब बिकती है, तबतक सफलता मिलना संभव नहीं है।" “हाँ, यह बात तो ठीक है; पर पुलिस उन होटलों पर छापा मारे, दश-बीस बोतल शराब मिले, मिल-बाँट कर उसे पी लें और दो-चार सौ रुपये लेकर उसकी छुट्टी कर दें तो भी क्या शराबबन्दी सफल हो जायेगी ?" "नहीं, इससे भी कुछ होनेवाला नहीं है। " "तो क्या करना होगा ?” " जबतक उन अड्डों को बर्बाद नहीं किया जायेगा, नष्ट-भ्रष्ट नहीं किया जायेगा, जिन अड्डों पर लुक-छिपकर यह अवैध शराब बनाई जाती है, तबतक सफलता मिलना असंभव ही है; क्योंकि यदि अड्डों पर शराब बनेगी तो मार्केट (बाजार) में आयेगी, आयेगी, अवश्य आयेगी; जायेगी कहाँ ? जब मार्केट में आयेगी तो लोगों के पेट में भी जायेगी, 12 अहिंसा : महावीर की दृष्टि में १९ अन्यथा जायेगी कहाँ ? जब लोगों के पेट में जायेगी तो उनके माथे में भी भन्नायेगी ही। यदि हम चाहते हैं कि शराब लोगों के माथे में न भन्नाये तो हमें इन्तजाम करना होगा कि वह लोगों के पेट में न जाये; यदि हम चाहते हैं। कि शराब लोगों के पेट में न जाये तो हमें इन्तजाम करना होगा कि वह मार्केट में न आये; यदि हम चाहते हैं कि वह मार्केट में न आये तो हमें इन्तजाम करना होगा कि वह बने ही नहीं। भाई ! इतना किए बिना काम नहीं चलेगा। इसीप्रकार यदि हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में हिंसा प्रस्फुटित ही न हो तो हमें उसे आत्मा के स्तर पर, मन के स्तर पर ही रोकना होगा; क्योंकि यदि आत्मा या मन के स्तर पर हिंसा उत्पन्न हो गई तो वह वाणी और काया के स्तर पर भी प्रस्फुटित होगी ही । यही कारण है कि भगवान महावीर बात की तह में जाकर बात करते हैं और कहते हैं कि यदि हिंसा को रोकना है तो उसे आत्मा और मन के स्तर पर ही रोकना होगा। जबतक लोगों के दिल साफ नहीं होंगे, जबतक लोगों की आत्मा में निर्मलता नहीं होगी; तबतक हिंसा के अविरलप्रवाह को रोकना संभव न होगा। यह बात तो यह हुई कि हिंसा अहिंसा की परिभाषा में 'आत्मा' शब्द का उपयोग क्यों किया गया है। पर अब बात यह है कि भगवान महावीर रागादि भावों की उत्पत्ति को ही हिंसा कह रहे हैं। भाई ! जिस रागभाव अर्थात् प्रेमभाव को सारा जगत अहिंसा माने बैठा है, भगवान महावीर उस रागभाव को ही हिंसा बता रहे हैं। बात जरा खतरनाक है; अतः सावधानी से सुनने की आवश्यकता है। जैनदर्शन में प्रतिपादित अहिंसा की इसी विशेषता के कारण कहा जाता रहा है कि अन्य दर्शनों की अहिंसा जहाँ समाप्त होती है, जैनदर्शन की अहिंसा वहाँ से आरंभ होती है। सारी दुनिया कहती है कि प्रेम से रहो और महावीर कहते हैं कि यह प्रेम - यह राग भी हिंसा है। है न अद्भुत बात ! पर सिर हिलाने से काम नहीं चलेगा, बात को गहराई से समझना होगा। न तो इस बात से असहमत
SR No.008337
Book TitleAhimsa Mahavira ki Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size106 KB
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