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अहिंसा : महावीर की दृष्टि में होकर उपेक्षा करने से ही बात बनेगी और न बिना समझे स्वीकार कर लेने से कुछ होनेवाला है। बात को बड़े ही धैर्य से गहराई से समझना होगा।
सुनो ! डॉक्टर दो प्रकार के होते हैं - कलम के और मलम के। शोध-खोज करनेवाले पीएच.डी. आदि कलम के डॉक्टर हैं और ऑपरेशन करनेवाले मलम के डॉक्टर हैं।
जब कोई मलम का डॉक्टर किसी मरीज का ऑपरेशन करता है तो मरीज होता है एक और डॉक्टर होते हैं कम से कम दो तथा चार नर्से भी साथ होती हैं; मरीज रहता है बेहोश और डॉक्टर रहते हैं होश में।
अतः ऑपरेशन के समय यदि मरीज मर जाये तो सम्पूर्ण जिम्मेदारी एक प्रकार से डॉक्टर की ही होती है; पर जब वाणी का डॉक्टर ऑपरेशन करता है तो डॉक्टर होता है अकेला और मरीज होते हैं - हजार-दो हजार, दश-पाँच हजार भी हो सकते हैं; डॉक्टर के साथ मरीज भी पूरे होश में रहते हैं। अतः यदि कोई हानि हो तो मरीज और डॉक्टर दोनों की समानरूप से जिम्मेदारी रहती है।
डॉक्टर किसी मरीज का ऑपरेशन कर रहा हो; मरीज की बेहोशी उतनी गहरी न हो, जितना गहरा ऑपरेशन हो रहा हो; - ऐसी स्थिति में कदाचित् मरीज को ऑपरेशन के बीच में ही होश आ जाये तो क्या होगा? सोचा है कभी आपने?
यदि मरीज डरपोक हुआ तो ऑपरेशन की टेबल से भागने की कोशिश करेगा और यदि क्रोधी हुआ तो डॉक्टर को भी भगा सकता है; पर ध्यान रहे - ऐसी हालत में चाहे मरीज भागे, चाहे डॉक्टर को भगाये, मरेगा मरीज ही, डॉक्टर मरनेवाला नहीं है। अतः भला इसी में है कि जो भी हो, तबतक चुपचाप लेटे रहने में ही मरीज का लाभ है, जबतक कि
ऑपरेशन होकर टाँके न लग जायें; लग ही न जायें, अपितु लगकर, सूखकर डॉक्टर द्वारा खोल न दिये जायें।
भाई ! यह कहकर कि रागादिभावों की उत्पत्ति ही हिंसा है, प्रेमभाव भी हिंसा ही है, मैंने आप सबका पेट चीर दिया है। यह सुनकर किसी को अरुचि उत्पन्न हो सकती है, किसी को क्रोध भी आ सकता है; कोई सभा छोड़कर भी जा सकता है, कोई ताकतवर मेरा बोलना भी बन्द करा
अहिंसा : महावीर की दृष्टि में सकता है; पर ध्यान रहे, चाहे आप भागे, चाहे मुझे भगा दें; नुकसान आपका ही होगा, मेरा नहीं।
अतः भला इसी में है कि अब आप चुपचाप शान्ति से तबतक बैठे रहें, जबतक कि बात पूरी तरह साफ न हो जाये. स्पष्ट न हो जाये। ___हाँ, तो भाई! बात यह है कि महावीर रागभाव को, प्रेमभाव को भी हिंसा कहते हैं। भाई ! जिसे तुम प्रेम से रहना कहते हो, शान्ति से रहना कहते हो; वह प्रेम ही तो अशान्ति का वास्तविक जनक है, हिंसा का मूल है।
यह तो आप जानते ही हैं कि दुनिया में सर्वाधिक द्रव्यहिंसा युद्धों में ही होती है और युद्ध तीन कारणों से ही होते रहे हैं। वे तीन कारण हैं - जर, जोरू और जमीन । जर माने रुपया-पैसा, धन-सम्पत्ति; जोरू माने पत्नी - स्त्री और जमीन तो आप जानते ही हैं।
रामायण का युद्ध जोरू के कारण ही हुआ था। राम की पत्नी को रावण हर ले गया और रामायण का प्रसिद्ध युद्ध हो गया।
इसीप्रकार महाभारत का युद्ध जमीन के कारण हुआ था।
पाण्डवों ने कौरवों से कहा - "यदि आप हमें पाँच गाँव भी दे दें तो हम अपना काम चला लेंगे।"
पर कौरवों ने उत्तर दिया - "बिना युद्ध के सुई की नोंक के बराबर भी जमीन नहीं मिल सकती।"
बस फिर क्या था? महाभारत मच गया।
'पैसे के कारण भी युद्ध होता हैं' - यह बात सिद्ध करने के लिए भी क्या पुराणों की गाथाएँ खोजनी होंगी, इतिहास के पन्ने पलटने होंगे; विशेषकर व्यापारियों की सभा में, जिनकी सारी लड़ाइयाँ पैसों के पीछे ही होती हैं, जिनका मौलिक सिद्धान्त है कि चमड़ी जाये, पर दमड़ी न जाये। ___भाई ! यह आपकी ही बात नहीं है। आज तो सारी दुनिया ही व्यापारी हो गई है। डॉक्टरी जैसा सेवा का काम भी आज व्यापार हो गया है। धर्म के नाम पर भी अनेक दुकानें खुल गई हैं।