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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ' अनध्यवसाय यह क्या है' या ' कुछ है' केवल इतना अरुचि और अनिर्णयपूर्वक जानने को अनध्यवसाय कहते हैं। जैसे- प्रात्मा कुछ होगा, रास्ते में चलते हुए किसी मुलायम पदार्थ के स्पर्श से यह जानना कि कुछ है 1 जिज्ञासु - अब सम्यक्चारित्र के लिये भी बताइये। प्रवचनकार - चारित्रं भवति यतः समस्तसावद्य योगपरिहरणात् । सकल कषाय विमुक्तं विशदमुदासीनमात्मरुपं तत् ।। ३६।। समस्त सावद्य योग से रहित, शुभाशुभभावरूप कषायभाव से विमुक्त, जगत से उदासीनरूप निर्मल आत्मलीनता ही सम्यक्चारित्र है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को रत्नत्रय भी कहते हैं और यही मुक्ति का मार्ग है। शंकाकार- तो क्या रत्नत्रय धारण करने से मुक्ति की ही प्राप्ति होगी, स्वर्गादिक नहीं? प्रवचनकार - भाई! स्वर्गादिक तो संसार हैं, जो मुक्ति का मार्ग है वही संसार का मार्ग कैसे हो सकता है ? स्वर्गादिक की प्राप्ति तो मुक्ति-मार्ग के पथिक को होने वाले हेयरूप शुभभाव से देवायु आदि पुण्य का बंध होने पर सहज ही हो जाती है । रत्नत्रय तो मुक्ति-मार्ग है, बंधन का मार्ग नहीं । प्रवचनकार शंकाकार - तो फिर रत्नत्रय के धारी मुनिराज स्वर्गादिक क्यों जाते हैं ? रत्नत्रय तो मुक्ति का ही कारण है, पर रत्नत्रयधारी मुनिवरों के जो रागांश है, वही बंध का कारण है। शुभभावरूप अपराध फल से ही मुनिवर स्वर्ग में जाते हैं। - शंकाकार - शुभोपयोग को अपराध कहते हों ? प्रवचनकार - सुनों भाई, मैं थोडें ही कतधहता हूँ ! प्राचार्य अमृतचंद्र नें स्वयं ही लिखा हैं ननु कथमेव सिद्धयति देवायुःप्रभृति सत्प्रकृतिबन्धः । सकल जन सुप्रसिद्धो रत्नत्रयधारिणां मुनिवराणाम् ।। २१९।। यदि रत्नत्रय बंध का कारण नहीं है तो फिर शंका उठती है कि रत्नत्रयधारी मुनिवरों के देवायु आदि सत्प्रकृतियों का बंध कैसे होता है ? ३१ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
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