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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates गुणव्रत दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्डव्रत ये तीन गुणव्रत कहलाते हैं । १. दिग्ग्रत - कषायांश कम हो जाने से गृहस्थ दशों दिशाओं में प्रसिद्ध स्थानों के आधार पर अपने आवागमन की सीमा निश्चित कर लेता है और जीवनपर्यन्त उसका उल्लंघन नहीं करता, इसे दिग्व्रत कहते हैं । २. देशव्रत - दिग्व्रत की बाँधी हुई विशाल सीमा को घड़ी, घंटा, दिन, सप्ताह, माह आदि काल की मर्यादापूर्वक और भी सीमित ( कम ) कर लेना देशव्रत है। ३. अनर्थदण्डव्रत - बिना प्रयोजन हिंसादि पापों में प्रवृत्ति करना या उस रूप भाव करना अनर्थदण्ड है और उसके त्याग को अनर्थदण्डव्रत कहते हैं। व्रती श्रावक बिना प्रयोजन जमीन खोदना, पानी ढोलना, अग्नि जलाना, वायु संचार करना, वनस्पति छेदन करना आदि कार्य नहीं करता अर्थात् त्रसहिंसा का तो वह त्यागी है ही, पर अप्रयोजनीय स्थावरहिंसा का भी त्याग करता है 1 तथा राग-द्वेषादिक प्रवृत्तियों में भी उसकी वृत्ति नहीं रमती, वह इनसे विरक्त रहता है। इसी व्रत को अनर्थदण्डव्रत कहते हैं। शिक्षा सामायिकव्रत, प्रोषधोपवासव्रत, अतिथिसंविभागव्रत ये चार शिक्षाव्रत हैं। भोगोपभोगपरिमाणव्रत और १. सामायिकव्रत - सम्पूर्ण द्रव्यों में राग-द्वेष के त्यागपूर्वक समता भाव का अवलम्बन करके ग्रात्मभाव की प्राप्ति करना ही सामायिक है। व्रती श्रावकों द्वारा प्रातः, दोपहर, सायं - कम से कम अन्तर्मुहूर्त एकान्त स्थान में सामायिक करना सामायिकव्रत है। कषाय, २. प्रोषधोपवासव्रत विषय और आहार का त्याग कर आत्मस्वभाव के समीप ठहरना उपवास है। प्रत्येक अष्टमी व चतुर्दशी को सर्वारंभ छोड़कर उपवास करना ही प्रोषधोपवास है। यह तीन प्रकार से किया जाता है उत्तम, मध्यम और जघन्य । उत्तम पर्व के एक दिन पूर्व व एक दिन बाद एकासनपूर्वक व पर्व के दिन पूर्ण उपवास करना उत्तम प्रोषधोपवास है। २५ Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
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