SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मध्यम- केवल पर्व के दिन उपवास करना मध्यम प्रोषधोपवास है। जघन्य- पर्व के दिन केवल एकासन करना जघन्य प्रोषधोपवास है। ३. भोगोपभोगपरिमाणव्रत- प्रयोजनभूत सीमित परिग्रह के भीतर भी कषाय कम करके भोग और उपभोग का परिमाण घटाना भोगोपभोगपरिमाणव्रत है। पंचेंद्रिय के विषयों में जो एक बार भोगने में आ सकें उन्हें भोग और बारबार भोगने में प्रावें उन्हें उपभोग कहते हैं। ४. अतिथिसंविभागवत- मुनि, व्रती श्रावक और अव्रती श्रावक-इन तीन प्रकार के पात्रों को अपने भोजन में से विभाग करके विधिपूर्वक दान देना अतिथिसंविभागवत है। निश्चय सम्यग्दर्शनपूर्वक उक्त बारह व्रतों को निरतिचार धारण करने वाला श्रावक ही व्रती श्रावक कहलाता हैं, क्योंकि बिना सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान के सच्चे व्रतादि होते ही नहीं हैं। तथा निश्चय सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञानपूर्वक अनंतानुबंधी और अप्रत्याख्यानावरण कषाय के प्रभाव होने पर प्रकट होने वाली प्रात्मशुद्धि के साथ सहज ही ज्ञानी श्रावक के उक्त व्रतादिरूप भाव होते हैं। आत्मज्ञान बिना जो व्रतादिरूप शुभ भाव होते हैं, वे सच्चे व्रत नहीं हैं। प्रश्न - १. व्रती श्रावक किसे कहते है ? श्रावक के व्रत क्या हैं? वे कितने प्रकार के होते हैं ? नाम सहित गिनाइये।। २. अहिंसाणुव्रत और सत्याणुव्रत का विस्तार से विवेचन कीजिये। ३. निम्नांकितों में से किन्हीं तीन की परिभाषाएँ दीजिये : हिंसा, अनर्थदण्डव्रत, सामायिक, शिक्षाव्रत, प्रचौर्याणुव्रत ४. निम्नलिखित में परस्पर अन्तर बताइये : (क) भोग और उपभोग (ख) दिग्व्रत और देशव्रत (ग) परिग्रहपरिमाणव्रत और भोगोपभोगपरिमाणव्रत ५. “ज्ञानी श्रावक के बारह व्रत” विषय पर अपनी भाषा में एक निबंध लिखिए। २६ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy