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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates बचने का प्रयत्न रखता है। हिंसा भाव का एकदेश त्याग होने से यह व्रत अहिंसाणुव्रत कहलाता है। २. सत्याणुव्रत - प्रमाद के योग से असत् वचन बोलना असत्य है, इसका एकदेश त्याग ही सत्याणुव्रत है। असत् चार प्रकार का होता है : (१) सत् का अपलाप (२) असत् का उद्भावन (३) अन्यथा प्ररूपण (४) गर्हित वचन विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान कहना सत् का अपलाप है। अविद्यमान को विद्यमान कहना असत् का उद्भावन है। कुछ का कुछ कहना अर्थात् वस्तु स्वरूप जैसे है वैसा न कह कर अन्यथा कहना अन्यथा प्ररूपण है। जैसे-हिंसा में धर्म बताना। निंदनीय, कलहकारक, पीड़ाकारक, शास्त्रविरुद्ध , हिंसापोषक, परापवादकारक आदि वचनों को गर्हित वचन कहते हैं। ३. अचौर्याणुव्रत - जिस वस्तु में लेने-देने का व्यवहार है, ऐसी वस्तु को प्रमाद के योग से उसके स्वामी की अनुमति बिना ग्रहण करना चोरी है। ऐसी चोरी का त्याग अचौर्यव्रत है। चोरी का त्यागी होने पर भी गृहस्थ कूप, नदी आदि से जल एवं खान से मिट्टी आदि वस्तुओं को बिना पूछे भी ग्रहण कर लेता है, अतः एकदेश चोरी का त्यागी होने से अचौर्याणुव्रत कहलाता है। ४. ब्रह्मचर्याणुव्रत- पूर्णतया स्त्री-सेवन का त्याग ब्रह्मचर्यव्रत है। जो गृहस्थ इसे धारण करने में असमर्थ हैं, वे स्वस्त्री में संतोष करते है और परस्त्री-रमण के भाव को सर्वथा त्याग देते हैं, उनका यह व्रत एकदेशरूप होने से ब्रह्मचर्याणव्रत कहलाता है। ५. परिग्रहपरिमाणव्रत- अपने से भिन्न पर-पदार्थों में ममत्वबुद्धि ही परिग्रह है। यह अन्तरंग और बहिरंग के भेद से दो प्रकार का होता है। मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, तथा हास्यादि नव नोकषाय ये चौदह अंतरंग परिग्रह के भेद हैं। तथा जमीन-मकान, सोना-चाँदी, धन-धान्य, नौकर-नौकरानी, बर्तन आदि वस्तुयें बाहय परिग्रह हैं। उक्त परिग्रहों में गृहस्थ के मिथ्यात्व नामक परिग्रह का तो पूर्ण रूप से त्याग हो जाता है तथा बाकी अंतरंग परिग्रहों का कषायांश के सद्भाव के कारण एकदेश त्याग होता हैं तथा वह बाह्य परिग्रह की सीमा निर्धारित कर लेता है। इस व्रत को परिग्रहपरिमाणव्रत कहते हैं। २४ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
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