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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates दर्शनलाल - सब जीवों का ज्ञान एक सरीखा तो नहीं होता ? ज्ञानचन्द - हाँ, शक्ति अपेक्षा तो सब में ज्ञान गुण एक समान ही है किन्तु वर्तमान विकास की अपेक्षा ज्ञान के मुख्य रूप से ८ भेद होते हैं :(१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मनःपर्ययज्ञान (५) केवलज्ञान (६) कुमति (७) कुश्रुत (८) कावधि दर्शनलाल - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि से क्या तात्पर्य ? ज्ञानचन्द - पराश्रय की बुद्धि छोड़कर दर्शनोपयोगपूर्वक स्वसन्मुखता से प्रकट होने वाले निज आत्मा के ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं। अथवा इन्द्रियाँ और मन हैं निमित्त जिसमें, उस ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं और मतिज्ञान के द्वारा जाने हुए पदार्थ के संबंध से अन्य पदार्थ को जानने वाले ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते हैं। __इन्द्रियों और मन के निमित्त बिना तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की मर्यादा लिए हुए रूपीपदार्थ के स्पष्ट ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं। दर्शनलाल - और मनःपर्ययज्ञान ? । ज्ञानचन्द - सुनो, सब बताता हूँ। ज्ञानी मुनिराज को इन्द्रियों और मन के निमित्त बिना द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की मर्यादा लिये हुए दूसरे के मन में स्थित रूपीविषय के स्पष्ट ज्ञान होने को मनःपर्ययज्ञान कहते हैं। तथा जो तीनलोक तथा तीनकालवर्ती सर्व पदार्थों व उनके समस्त गुण व समस्त पर्यायों को तथा अपेक्षित धर्मों को प्रत्येक समय में स्पष्ट और एक साथ जानता है, ऐसे पूर्ण ज्ञान को केवलज्ञान कहते हैं। दर्शनलाल - ये तो ठीक पर कुमति आदि भी कोई ज्ञान है ? ज्ञानचन्द - आत्मस्वरूप न जानने वाले मिथ्यादृष्टि के जो मति, श्रुत, अवधिज्ञान होते हैं-वे कुमति, कुश्रुत और कुअवधि कहलाते हैं। क्योंकि मूलतत्त्व में विपरीत श्रद्धा होने से उसका ज्ञान मिथ्या होता है, भले ही उसके अप्रयोजनभूत लौकिक ज्ञान यथार्थ हो किन्तु प्रयोजनभूत तत्त्वज्ञान यथार्थ न होने से उसके वे सब ज्ञान मिथ्या ही हैं। दर्शनलाल - क्या दर्शनोपयोग के भी भेद होते हैं ? Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
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