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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ज्ञानचन्द - हाँ! दर्शनोपयोग चार प्रकार का होता है: (१) चक्षुदर्शन (२) प्रचक्षुदर्शन (३) अवधिदर्शन (४) केवलदर्शन दर्शनलाल - चक्षुदर्शन तो ठीक है अर्थात् आँख से देखना, परन्तु प्रचक्षुदर्शन क्या है ? ज्ञानचन्द - नहीं भाई! ऐसा नहीं है। चक्षुइन्द्रिय जिसमें निमित्त हो उस मतिज्ञान से पहले जो सामान्य प्रतिभास या अवलोकन होता है उसको चक्षुदर्शन कहते हैं। और चक्षुइन्द्रिय को छोड़कर शेष चार इन्द्रियाँ और मन जिसमें निमित्त हो ऐसे मतिज्ञान से पहले होने वाले सामान्य प्रतिभास को प्रचक्षुदर्शन कहते हैं। दर्शनलाल - बहुत ठीक। और अवधिदर्शन ? ज्ञानचन्द - इसी प्रकार अवधिज्ञान से पहिले होने वाले सामान्य प्रतिभास को अवधिदर्शन कहते हैं, परन्तु केवलदर्शन में कुछ विशेषता है। दर्शनलाल - वह क्या ? ज्ञानचन्द - केवलज्ञान के साथ होने वाले सामान्य प्रतिभास व अवलोकन को केवलदर्शन कहते हैं। केवलदर्शन व केवलज्ञान में कालभेद नहीं होता। दर्शनलाल - वाह भाई! खूब समझाया ! धन्यवाद !! प्रश्न - १. उपयोग किसे कहते हैं ? वह कितने प्रकार का होता है ? भेद-प्रभेद सहित गिनाइए। २. दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए। ३. निम्नांकित में से किन्हीं दो की परिभाषाएँ दीजिये : मतिज्ञान , केवलज्ञान, चक्षुदर्शन, केवलदर्शन । ४. आचार्य उमास्वामी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए। १४ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
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