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पाठ ३
उपयोग
आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी ( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व ) तत्त्वार्थसूत्रकर्त्तारं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् ।
वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामीमुनीश्वरम् ।।
कम से कम लिखकर अधिक से अधिक प्रसिद्धि पाने वाले आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र से जैन समाज जितना अधिक परिचित है, उनके जीवन परिचय के संबंध में उतना ही अपरिचित है।
ये कुन्दकुन्दाचार्य के पट्ट शिष्य थे तथा विक्रम की प्रथम शताब्दी के अन्तिम काल में तथा द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत-भूमि को पवित्र कर रहे थे 1
आचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी उन गौरवशाली आचार्यो में हैं जिन्हें समग्र आचार्य परम्परा में पूर्ण प्रामाणिकता और सन्मान प्राप्त है । जो महत्त्व वैदिकों में गीता का, ईसाईयों में बाइबल का और मुसलमानों में कुरान का माना जाता है, वही महत्त्व जैन परम्परा में गृद्धपिच्छ उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र को प्राप्त है।
इसका दूसरा नाम मोक्षशास्त्र भी है। यह संस्कृत भाषा का सर्वप्रथम जैन ग्रन्थ है। इस महान् ग्रन्थ पर संस्कृत व हिन्दी आदि अनेक भाषाओं में अनेक विस्तृत और गंभीर टीकाएँ व भाष्य लिखे गये है; जिनमें समन्तभद्र का गंधहस्ति महाभाष्य ( अप्राप्य ), अकलंक का तत्वार्थराजवार्तिक, विद्यानन्दि का तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि आदि संस्कृत में तथा हिन्दी में पंडित सदासुखदासजी की प्रर्थप्रकाशिका आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।
प्रस्तुत अंश तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर लिखा गया है।
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