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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इस प्रतिमा वाले श्रावक की परिणति में वीतरागता बहुत बढ़ गई होती है व निर्विकल्प दशा भी जल्दी-जल्दी आती है और अधिक काल ठहरती है। उनकी यह अंतरंग शुद्ध परिणति निश्चय उद्दिष्टत्याग प्रतिमा है तथा इसके साथ होने वाले कषाय मंदतारूप बर्हिमुख शुभ भाव व तद्नुसार बाह्य क्रिया व्यवहार उद्दिष्टत्याग प्रतिमा है। ऐसी दशा में पहुंचने वाले श्रावक की संसार, देह आदि से उदासीनता बढ़ जाती है। इस प्रतिमा के धारक श्रावक मुनि के समान नवकोटिपूर्वक उद्दिष्ट आहार' के त्यागी व घर कुटुम्ब आदि से अलग होकर स्वच्छंद विहारी होते हैं। ऐलक दशा में मात्र लंगोटी एवं पिच्छि-कमण्डलु के अतिरिक्त समस्त बाह्य परिग्रह का त्याग हो जाता है। क्षुल्लक दशा में अनासक्ति भाव ऐलक के बराबर नहीं हो पाते, अतः उनकी आहार-विहार की क्रियायें ऐलक के समान होने पर भी लंगोटी के अलावा प्रोढ़ने के लिए खण्ड-वस्त्र (चादर) तथा पिच्छि के स्थान पर वस्त्र रखने का एवं केशलोंच के बजाय हजामत बनाने का तथा पात्र में भोजन करने का राग रह जाता है। इस प्रतिमा के धारक श्रावक नियम से गृहविरत ही होते है। जिस प्रकार मुनि को अन्तर्मुहूर्त के अंदर अंदर निर्विकल्प आनन्द का अनुभव तथा निरंतर वीतरागता वर्तती रहती है, वह भावलिंग है और उसके साथ होने वाला २८ मुलगुण आदि का शुभ विकल्प द्रव्यलिंग है और तदनुकूल क्रिया को भी द्रव्यलिंग कहा जाता हैं, उसी प्रकार पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक , की जिसमें कभी-कभी स्वरूपानंद का निर्विकल्प अनुभव हो जाता है - ऐसी निरंतर वर्तती हुई यथोचित वीतरागता, वह भाव प्रतिमा अर्थात् निश्चय प्रतिमा है एवं तद्-तद् प्रतिमा के अनुकूल शास्त्र विहित कषाय मंदतारूप भाव द्रव्य प्रतिमा अर्थात् व्यवहार प्रतिमा है। तदनुकूल बाहर की क्रियाओं का व्यवहार प्रतिमा के साथ निमित्त१ मुनि, ऐलक व क्षुल्लक के निमित्त बनाई गई वस्तुएं उद्दिष्ट की श्रेणी में आती हैं। वैसे उद्दिष्ट का शाब्दिक अर्थ उद्देश्य होता है। २ सातवी प्रतिमा से दशवी प्रतिमाधारी श्रावक गृहविरत व गृहनिरत दोनों प्रकार के होते हैं। ३० Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008318
Book TitleTattvagyan Pathmala 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1989
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size383 KB
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