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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नैमित्तिक सम्बन्ध होने से उन क्रियाओं को भी व्यवहार प्रतिमा कहा जाता है। जिस जीव को अकेली द्रव्य प्रतिमा हो और उसको वह सच्ची प्रतिमारूप चारित्र दशा मानता हो तो उसकी विपरीत मान्यता के कारण मिथ्यात्व का बंध होगा, मिथ्यात्व के बंध के साथ कषाय की मंदता के अनुसार पुण्यबंध जरूर होगा, उससे स्वर्गादिक की प्राप्ति भी होगी; किन्तु वह संसार का अंत नहीं ला सकता। पंचम गुणस्थान में ११ प्रतिमाएँ ग्रहण करने का उपदेश है सो प्रारंभ से उत्तरोत्तर अंगीकार करनी चाहिए। नीचे की प्रतिमानों की दशा जो ग्रहण की थी; वह आगे की प्रतिमाओं में छटती नहीं है, वृद्धि को ही प्राप्त होती है। पहले से छठवीं प्रतिमा तक धारण करने वाले जघन्य व्रती श्रावक, सातवीं से नौवीं प्रतिमा तक धारण करने वाले मध्यम व्रती श्रावक एवं दशवीं व ग्यारहवीं प्रतिमाधारी उत्कृष्ट व्रती श्रावक कहलाते हैं। प्रश्न - १. निम्नलिखित की परिभाषा लिखिए : प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, दर्शन प्रतिमा, उद्दिष्टत्याग प्रतिमा, अनुमतित्याग प्रतिमा। २. निम्नलिखित मे परस्पर अन्तर स्पष्ट कीजिए : (क) निश्चय प्रतिमा और व्यवहार प्रतिमा (ख) ब्रह्मचर्याणुव्रत और ब्रह्मचर्य प्रतिमा (ग) क्षुल्लक और ऐलक (घ) परिग्रहत्याग व्रत और परिग्रहत्याग प्रतिमा ३. कविवर पंडित बनारसीदास के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए। ३१ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008318
Book TitleTattvagyan Pathmala 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1989
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size383 KB
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