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नियमसार
चतुर्भिः समबन्धः त्रिभिः पञ्चभिर्विषमबन्धः । अयमुत्कृष्टपरमाणुः । गलतां पुद्गलद्रव्याणाम् अन्तोऽवसानस्तस्मिन् स्थितो यः स कार्यपरमाणुः। अणवश्चतुर्भेदाः कार्यकारणजघन्योत्कृष्टभेदैः। तस्य परमाणुद्रव्यस्य स्वरूपस्थितत्वात् विभावाभावात् परमस्वभाव इति।
तथा चोक्तं प्रवचनसारे
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'णिद्धा वा लुक्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमा वा । समदो दुराधिगा जदि बज्झंति हि आदिपरिहीणा ।। णिद्वत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्वेण बंधमणुभवदि । लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो।।
और चार गुणवालेका समबंध होता है तथा तीन गुणवालेका और पाँच गुणवालेका *विषमबंध होता है, यह उत्कृष्ट परमाणु है। गलते अर्थात् पृथक होते पुद्गलद्रव्योंके अंतमें-अवसानमें (अंतिम दशामें ) स्थित वह कार्यपरमाणु है ( अर्थात् स्कंध खंडित होते– होते जो छोटे से छोटा अविभाग भाव रहता है वह कार्यपरमाणु है ) । ( इसप्रकार ) अणुओंके ( - परमाणुओंके ) चार भेद हैं : कार्य, कारण, जघन्य और उत्कृष्ट। वह परमाणुद्रव्य स्वरूपमें स्थित होनेसे उसे विभावका अभाव है, इसलिये ( उसे ) परम स्वभाव है ।
इसीप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत) श्री प्रवचनसारमें ( १६५ वीं तथा १६६ वीं गाथा द्वारा ) कहा है कि :
‘[ गाथार्थ:-] परमाणुके- परिणाम, स्निग्ध हों यो रूक्ष हों, सम अंशवाले हों या विषम अंशवाले हों, यदि समान की अपेक्षा दो अधिक अंशवाले हों तो बँधते हैं; जघन्य अंशवाला नहीं बँधता ।
स्निग्धरूपसे दो अंशवाला परमाणु चार अंशवाले स्निग्ध ( अथवा रूक्ष ) परमाणुके साथ बंधका अनुभव करता है; अथवा रूक्षता से तीन अंशवाला परमाणु पाँच अंशवालेके साथ जुड़ा हुआ बँधता है।
* समबंध अर्थात् सम संख्याके गुणवाले परमाणुओंका बंध और विषमबंध अर्थात् विषम संख्याके गुणवाले परमाणुओंका बंध। यहाँ ( टीकामें) समबंध और विषमबंधका एक–एक उदाहरण दिया है तदनुसार समस्त समबंध और विषमबंध समझ लेना ।
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