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अजीव अधिकार
(मालिनी) इति विविधविकल्पे पुद्गले दृश्यमाने न च कुरु रतिभावं भव्यशार्दूल तस्मिन्। कुरु रतिमतुलां त्वं चिच्चमत्कारमात्रे भवसि हि परमश्रीकामिनीकामरूपः।।३८ ।।
धाउचउक्कस्स पुणो जं हेऊ कारणं ति तं णेयो। खंधाणं अवसाणं णादव्यो कजुपरमाणू।। २५ ।।
धातुचतुष्कस्य पुनः यो हेतुः कारणमिति स ज्ञेयः। स्कन्धानामवसानो ज्ञातव्यः कार्यपरमाणुः ।। २५ ।।
कारणकार्यपरमाणुद्रव्यस्वरूपाख्यानमेतत्।
पृथिव्यप्तेजोवायवो धातवश्चत्वारः तेषां यो हेतु: स कारणपरमाणुः। स एव जघन्यपरमाणुः स्निग्धरूक्षगुणानामानन्त्याभावात् समविषमबंधयोरयोग्य इत्यर्थः। स्निग्धरूक्षगुणानामनन्तत्वस्योपरि द्वाभ्याम्
[श्लोकार्थ:-] इसप्रकार विविध भेदोंवाला पुद्गल दिखाई देनेसे, हे भव्यशार्दूल ! (भव्योत्तम!) तू उसमें रतिभाव न कर। चैतन्यचमत्कारमात्रमें (अर्थात् चैतन्यचमत्कारमात्र आत्मामें) तू अतुल रति कर कि जिससे तू परमश्रीरूपी कामिनीका वल्लभ होगा। ३८ ।
गाथा २५ __अन्वयार्थ:-[ पुनः ] फिर [ यः] जो [धातुचतुष्कस्य ] ( पृथ्वी, जल, तेज और वायु-इन) चार धातुओंका [ हेतुः ] हेतु है, [ सः ] वह [ कारणम् इति ज्ञेयः ] कारणपरमाणु जानना; [ स्कन्धानाम् ] स्कंधोंके [ अवसानः ] अवसानको (-पृथक् हुए अविभागी अंतिम अंशको) [ कार्यपरमाणुः ] कार्यपरमाणु [ ज्ञातव्यः ] जानना।
टीका:-यह, कारणपरमाणुद्रव्य और कार्यपरमाणुद्रव्यके स्वरूपका कथन है।
पृथ्वी, जल, तेज और वायु यह चार धातु हैं; उनका जो हेतु है वह कारणपरमाणु है। वही (परमाणु), एक गुण स्निग्धता या रूक्षता होने से, सम या विषम बंधको अयोग्य ऐसा जघन्य परमाणु है-ऐसा अर्थ है। एक गुण स्निग्धता या रूक्षताके ऊपर , दो गुणवालेका
जो हेतु धातु चतुष्कका कारण-अणु विख्यात है। अरु स्कंधके अवसानमें कार्यणु होता प्राप्त है।।२५।।
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